इस तन्हा रात में अजीब सी बात है, लाख
ना चाहने पर भी याद तू आती है !!

ऐ राम तेरे युग का रावण ही अच्छा था
दस चेहरे थे पर सब सामने तो थे..!!

दो लफ्ज लिखे जो तेरी याद मेँ
सब कहने लगे तू आशिक बहुत पुराना है

अफवाह थी कि मुझें इश्क हुआ है
लोगों ने पूछ पूछ कर आशिक बना दिया

गर मेरे होंठ पर लग गया तेरे सुर्ख होठों का रंग
तो दाग़ अच्छे है

बड़े ही अच्छे हुआ करते थे वो दिन
जिनमे तेरा आना जाना लगा रहता था

मरते तो तुझ पर लाखो होगें
मगर मै तो तेरे साथ जिना चाहता हुं सनम

आज दर्द कुछ इस तरह से हो रहा है
कम्बख्त जैसे फिर कभी होगा ही नही

ना तुमने आवाज़ दी ना मैंने मुड़ के देखा
ख़ामोशी चलती रही दरम्यां !!

जहासे तेरी बादशाही खत्म होती है वहासे मेरी नवाबी सुरु होती हे ।

इजाजत हो तो तेरे पास आ जाऊं मै...चाँद के पास भी तो एक सितारा रहता है !

हम बने थे तबाह होने के लिए…… तेरा छोड़ जाना तो महज़ इक बहाना था….!!

रहता तो नशा तेरी यादों का ही है
कोई पूछे तो कह देता हुँ पी रखी है

वो पूछते हैं क्या नाम है मेरा
मैंने कहा बस "अपना" कहकर पुकार लो

यूँ ही रूठे रहना तुम हम से
कसम से तुम रूठे हुये भी अच्छे लगते हो...