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Love Shayari
बचपन भी कमाल का थाखेलते खेलते
बचपन भी कमाल का थाखेलते खेलते
बचपन भी कमाल का था
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें या ज़मीन पर आँख बिस्तर पर ही खुलती थी
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ज़माने से लड़ी तूने ज़ंग कोई
आँखों में बसी है प्यारी सूरत
नीँद मे भी गिरते है मेरे
उदासियों के सन्नाटे बड़े एहतराम से
यूँ ना खींच मुझे अपनी तरफ
इश्क का धंधा ही बंद कर
जिंदगी भर दर्द से जीते रहेदरिया
Dur Reh Kr Qareeb kitny Hai
बस यही सोच कर हर तपिश
दर्द को न देखिये दर्द से;
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