बिछड़ के तुम से ज़िन्दगी सजा लगती है; यह साँस भी जैसे मुझ से खफा लगती है; तड़प उठते हैं दर्द के मारे; ज़ख्मों को मेरे जब तेरे दीदार की हवा लगती है।
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बिछड़ के तुम से ज़िन्दगी सजा लगती है; यह साँस भी जैसे मुझ से खफा लगती है; तड़प उठते हैं दर्द के मारे; ज़ख्मों को मेरे जब तेरे दीदार की हवा लगती है।
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