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Love Shayari
भीड़ में खड़ा होना मकसद नही
भीड़ में खड़ा होना मकसद नही
भीड़ में खड़ा होना मकसद नही है मेरा
बल्कि भीड़ जिसके लिए खड़ी है वो बनना है मुझे
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हिलते लबो को तो दुनिया जान
खुलेगी इस नज़र पे चश्मएतर आहिस्ता
दुःख देते हो खुद और खुद
फुर्सत किसे है ज़ख्मों को सरहाने
टूट जाये ख्वाब तो जुड़ने की
जो ईश्वर के सामने झुकता हैईश्वर
मै उन्हे बदला हुआ दिखता हुँकभी
तुम वादा करो आखरी दीदार करने
कल का दिन किसने देखा है
मैंने हर दर्द में इंसान को
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