ना जाने क्यूँ नज़र लगी ज़माने की; अब वजह मिलती नहीं मुस्कुराने की; तुम्हारा गुस्सा होना तो जायज़ था; हमारी आदत छूट गयी मनाने की।
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ना जाने क्यूँ नज़र लगी ज़माने की; अब वजह मिलती नहीं मुस्कुराने की; तुम्हारा गुस्सा होना तो जायज़ था; हमारी आदत छूट गयी मनाने की।
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