थक गया हु रोटी के पीछे भाग भाग कर
थक गया हु सोती रातो मै जाग जाग कर
काश मिल जाये वही बीता हुआ बचपन
जब माँ खिलाती थी भाग भाग कर
और सुलाती थी जाग जाग कर

एक दोस्त हलवाई की दुकान पर मिल गया मुझसे कहा-
आज माँ का श्राद्ध है माँ को लड्डू बहुत पसन्द है
इसलिए लड्डू लेने आया हूँ मैं आश्चर्य में पड़ गया
अभी पाँच मिनिट पहले तो मैं उसकी माँ से सब्जी मंडी में मिला था
मैं कुछ और कहता उससे पहले ही खुद उसकी माँ हाथ में झोला लिए वहाँ आ पहुँची
मैंने दोस्त की पीठ पर मारते हुए कहा भले आदमी ये क्या मजाक है
माँजी तो यह रही तेरे पास दोस्त अपनी माँ के दोनों कंधों पर हाथ रखकर हँसकर बोला
भई बात यूँ है कि मृत्यु के बाद गाय कौवे की थाली में लड्डू रखने से अच्छा है
कि माँ की थाली में लड्डू परोसकर उसे जीते जी तृप्त करूँ
मैं मानता हूँ कि जीते जी माता-पिता को हर हाल में खुश रखना ही सच्चा श्राद्ध है

वो माता-पिता ही हैं
जिनसे आपने मुस्कुराना सीखा

मैं क्या लिखूँ जिसकी कद्र जमाना करे
ये सोच आज माँ लिख दिया

मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
घर आके बहुत रोए माँ बाप अकेले में

आज लाखो रुपये बेकार है
वो एक रुपये के सामने
जो माँ स्कूल जाते वक्त देती थी.

लौट आती है बेअसर मेरी माँगी हुई हर दुआ...
जाने कौन से आसमान पर मेरा खुदा रहता है।

रूह के रिश्तों की ये गहराईयाँ तो देखिये
चोट लगती है हमें और चिल्लाते हैं माँ
G.R..s

कमाकर उतनी दौलत भी में अपनी माँ को दे नही पाया
जितने सिक्कों से वह मेरी नजर उतारा करती थी

पूछता है जब कोई मुझसे कि दुनिया में अब मोहब्बत बची है कहाँ
मुस्कुरा देता हूँ मैं और याद आ जाती है माँ

घेर लेने को मुझे जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बन कर सामने माँ की दुआएँ आ गई

मां जब भी दुआएं मेरे नाम करती है
रास्ते की ठोकरें मुझे सलाम करती हैं

ना उसका कसुर था ना मेरा यारो
बस मां-बाप के संसकारो ने हमें जुदा कर दिया

देश मेरा क्या बाजार हो गया है
पकड़ता हूँ जो तिरंगा हाथ में लोग पूछते हैं कितने का है
Er kasz

एक अच्छी मां तो हर एक बेटे के पास होती है
लेकिन एक अच्छा बेटा हर एक मां के पास नही होता है