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कितने झूठे हो गये है हमबच्चपन
कितने झूठे हो गये है हमबच्चपन
कितने झूठे हो गये है हम
बच्चपन में अपनों से भी रोज रुठते थे आज दुश्मनों से भी मुस्करा के मिलते है
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दो दिलो की मोहब्बत से जलते
शक तो था के मोहब्बत मेँ
अजीब जुल्म करती हैं तेरी यादें
गुफ्तगुँ करते रहा कीजिए यही इंसानी
रिश्वत भी नहीं लेती कम्बख्त जान
बडा अजीब होता है ये मोहब्बत
न ज़ख्म भरे न शराब सहारा
तेरी यादें भी न मेरे बचपन
जब महफ़िल में भी तन्हाई पास
वो चाँद है मगर आप से
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