मेरी आँखों मे मुहब्बत के जो मंज़र है
तुम्हारी ही चाहतों के समंदर है
मे हर रोज चाहता हुं कि तुझसे ये कह दुं मगर
लबों तक नहीं आता, जो मेरे दिल के अन्दर है
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मेरी आँखों मे मुहब्बत के जो मंज़र है
तुम्हारी ही चाहतों के समंदर है
मे हर रोज चाहता हुं कि तुझसे ये कह दुं मगर
लबों तक नहीं आता, जो मेरे दिल के अन्दर है
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