याद आती है तुम्हारी तो सिहर जाता हूँ मैं; देख कर साया तुम्हारा अब तो डर जाता हूँ मैं; अब न पाने की तमन्ना है न है खोने का डर; जाने क्यूँ अपनी ही चाहत से मुकर जाता हूँ मैं।
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याद आती है तुम्हारी तो सिहर जाता हूँ मैं; देख कर साया तुम्हारा अब तो डर जाता हूँ मैं; अब न पाने की तमन्ना है न है खोने का डर; जाने क्यूँ अपनी ही चाहत से मुकर जाता हूँ मैं।
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