शिकायत मौत से नहीं अपनों से थी
जरा सी आँख बंद क्या हुई वो कबर खोदने लगे
शिकायत मौत से नहीं अपनों से थी
जरा सी आँख बंद क्या हुई वो कबर खोदने लगे
वादा दोनों ने किया जीना मरना साथ
कही पे जिस्म नीला हुआ कहीं पे पीले हाथ
ये बताओ कि कैसे उठाते हैं जनाजा उनका
वो ख्वाब जो सीने में ही मर जाते हैं
तुमने तो कहा था मुझे हर पल याद करोगे.,
फिर मेरी हिचकियां बंध क्यूँ हो गयी.!!
अरे बद्दुआए ये किसी ओर के लिये रख
मोहब्बत का मरीज हूँ खुद ब खुद मर जाऊँगा
इक बात कहूँ इश्क बुरा तो नहीँ मानोगे
बङी मौज के थे दिन तेरी पहचान से पहले
ज़िन्दगी बहुत ख़ूबसूरत है, सब कहते थे।
जिस दिन तुझे देखा, यकीन भी हो गया।
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हमने गुज़रे हुए लम्हों का हवाला जो दिया हँस के वो कहने लगे रात गई बात गई ...!!!
भीगी भीगी सी ये जो मेरी लिखावट है
स्याही में थोड़ी सी, अश्कों की मिलावट है
तेरे दिल तक पहुँचे मेरे लिखे हर लब्ज
बस इसी मकसद से मेरे हाथ कलम पकड़ते है
मैंने पूछा क्यूँ आये.. मेरी जिंदगी में..??
पास आये और धीरे से बोले दिल दुखाने...
जरूरी नहीं जो शायरी करे उसे इश्क ही हो,
जिंदगी भी कुछ ज़ख्म बेमिसाल देती है.!
ऐ खुदा मेरी ज़िन्दगी की पूरी किताब तूने लिखी है
कुछ पन्नों पर AS U WISH भी लिख देता
वो अपनी ज़िंदगी में हुआ मशरूफ इतना;
वो किस-किस को भूल गया उसे यह भी याद नहीं..॥
कितना मुश्किल है ज़िन्दगी का ये सफ़र
खुदा ने मरना हराम किया लोगों ने जीना