वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी
फिर क्यों उसे चाँद और मुझे आवारा कहते हैं लोग
वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी
फिर क्यों उसे चाँद और मुझे आवारा कहते हैं लोग
इतनी लम्बी उम्र कि दुआ मत मांग मेरे लिए
कहीं ऐसा न हो के तू भी छोड़ दे और मौत भी नआये
जहर के असरदार होने से कुछ नही होता साहब
खुदा भी राजी होना चाहिये मौत देने के लिये
जरा देखो तो ये दरवाजे पर दस्तक किसने दी है
अगर इश्क हो तो कहना अब दिल यहाँ नही रहता
ना मज़हब ना शोहरत और ना ही रंगो का फ़र्क़ था
ऐे मौत तेरे डर से कल सभी चेहरे एक से नजर आये
अगर तेरी नजरें कतल करने में माहिर है तो सुन
हम भी मर-मर कर जीने में उस्ताद हो गये हैं
आज कुछ नही है मेरे शब्दों के गुलदस्ते में....
कभी-कभी मेरी ख़ामोशियाँ भी पढ़ लिया करो....
रिश्वत भी नहीं लेती कम्बख्त जान छोड़ने
की….!
ये तेरी याद मुझे बहुत ईमानदार लगती है.
तू मिले या ना मिले ये मेरे मुकद्दर कि बात है मगर
सुकून बहुत मिलता है तूझे अपना सोच कर
उस वक़्त , उसके दिल में भी , बहुत दर्द उठेगा ......
हमसे बिछड़ के , जब हमारे , हमनाम मिलेंगे ........!!"
अभी तो बस वक्त है उसका उसको हमे आजमाने दो
रो-रो कर पुकारेंगे वो मुझे जरा मर तो जाने दो
सांसों के सिलसिले को ना दो ज़िन्दगी का नाम…
जीने के बावजूद भी मर जाते हैं कुछ लोग…
=RPS
मैने उस से कहा बहुत प्यार आता है तुम पर...
उसने कहा- और तुम गरीब लोगोँ को आता भी
क्या है ??
सहारे याद के जीना बहुत दुश्वार होता है
भला कागज की कश्ती से भी कहीं दरिया पार होता है
आज जिस्म मे जान है तो देखते नही हैं लोग
जब रूह निकल जाएगी तो कफन हटा हटा कर देखेंगे लोग