तेरा सरसरी निगाह से देखना और नजरे चुरा लेना...
बस तस्सली देता है अब हम अजनबी तो नहीं..

तूने फेसले ही फासले बढाने वाले किये थे
वरना कोई नहीं था तुजसे ज्यादा करीब मेरे
er kasz

उमर लग जाती है एहसासों को अल्फ़ाज़ देने में
फ़क़त दिल टूटने भर से कोई शायर नहीं बनता
Er kasz

अजीब मजाक करती हैं यह नौकरी
काम मजदूरों वाले कराती हैं और लोग साहब कहकर बुलाते हैं

हमारा तर्जुबा हमें ये भी सिखाता है
जो जितना मक्खन लगाता है वो उतना ही चूना लगाता है

मेरा यही अन्दाज इस जमाने को खलता है
की ये साला इतना टुटने के बाद भी सीधा कैसे चलता है

उनसे कहना की क़िस्मत पे ईतना नाज ना करे
हमने बारिश मैं भी जलते हुए मकान देखें हैं
er kasz

क्या ख़ूब मिला है सिला सदियों की इबादत का
कहते है शायरी मे छिपाकर हर दर्द मुहब्बत का

खुबसूरत रिश्ता हैं मेरा और खुदा के बीच में
ज्यादा मैं मांगता नहीं और कम वो देता नहीं

जुदा हो के भी वो दोनों जी रहें हैं मुद्दतों से
कभी दोनों ही कहते थे कि ऐसा हो नहीं सकता.

मैं किसी से बेहतर करुं क्या फर्क पड़ता है
मै किसी का बेहतर करूं बहुत फर्क पड़ता है
Er kasz

शराब एक ऐसी पवित्र दवा है
जो आपके तमाम कीमती विचारों को भाषण में परिवर्तित कर देती है

अगर मै जिस्म परस्त होता तॊ तेरे पास ना होता
जो दौलत से मिल जाये मै उसकी इबादत नहीं करता

इज़्ज़त खोकर आन बचाने की आदत नही अपनी
वरना जवाब वो भी हैं मेरे पास की सवाल ही पैदा ना हो

गरीबो के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों में
तभी तो भगवान खुद बिक जाते है बाजारों में
er kasz