कुछ कर गुजरने की चाह में, कहाँ कहाँ से गुजरे
अकेले ही नज़र आये हम, जहां जहां से गुजरे…
कुछ कर गुजरने की चाह में, कहाँ कहाँ से गुजरे
अकेले ही नज़र आये हम, जहां जहां से गुजरे…
क्या हुआ अगर मेरे लब तेरे लब से लग गये
नाराज़ क्यूँ हो रही हो माफ़ ना करो तो बदला ही ले लो
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते हो क्यों"मैं खुद
हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो..
"मै तेरी मजबूरिया समझता था इसलिए जाने दिया...
अब तु भी मेरी मजबूरिया समझ और वापस आ जा...!!"
सोचा था सुनाएंगे सब गिले शिकवे उन्हें
मगर उनसे इतना भी न हुआ कि पूछें खामोश क्यूँ हो
मुहब्बत के ये आंसू है इन्हें आँखों में रहने दो
शरीफों के घरों का मसला बाहर नहीं जाता
ग़र तुम्हे अपना कहें तो तुम्हे कोई शिकवा तो नहीं
जमाना पूछता है बता तेरा अपना कौन है
मैने उस से कहा बहुत प्यार आता है तुम पर...
उसने कहा- और तुम गरीब लोगोँ को आता भी
क्या है ??
तुम न लगा पाओगे अंदाजा मेरी बर्बादियों का....
तुमने देखा ही कहा है मुझे शाम होने के बाद...
हर "जुर्म" पे उठती हैं उँगलियाँ मेरी तरफ__
क्या "मेरे" सिवा शहर में "मासूम" हैं सारे।
हमारे दुश्मनों को हमारे सामने सर उठाने की हिम्मत नही
और वो पगली दिल से खेल कर चली गयी
इतने बुरे ना थे जो ठुकरा दिया तुमने हमेँ
तेरे अपने फैसले पर एक दिन तुझे भी अफसोस होगा
सिखा दिया दुनिया ने मुझे अपनों पे भी शक करना
मेरी फितरत में तो था गैरों पे भरोसा करना
मौत को तो लोग यूहीं बदनाम करते है ।
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तकलीफ तो सुबह सुबह ठंडा पानी देता है ।
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो का वरना
लोगो को उनकी औकात दिखाने का हुनर आज भी रखता हूँ