थोड़ी सी पी शराब थोड़ी उछाल दी कुछ इस तरह से हमने जवानी निकाल दी!

पीने दे शराब मस्जिद में बैठ के ग़ालिब; या वो जगह बता जहाँ खुदा नहीं है।

मेरी तबाही का इल्जाम अब शराब पर है; करता भी क्या और तुम पर जो आ रही थी बात।

शराब और मेरा कई बार ब्रेकअप हो चुका है; पर कमबख्त हर बार मुझे मना लेती है।

तू होश में थी फिर भी हमें पहचान न पायी; एक हम है कि पी कर भी तेरा नाम लेते रहे!

तनहइयो के आलम की ना बात करो जनाब; नहीं तो फिर बन उठेगा जाम और बदनाम होगी शराब।

मैखाने मे आऊंगा मगर पिऊंगा नही साकी; ये शराब मेरा गम मिटाने की औकात नही रखती।

मैखाने मे आऊंगा मगर पिऊंगा नहीं ऐ साकी; ये शराब मेरा गम मिटाने की औकात नही रखती!

मैं थोड़ी देर तक बैठा रहा उसकी आँखों के मैखाने में; दुनिया मुझे आज तक नशे का आदि समझती है।

मैं नहीं इतना घाफिल कि अपने चाहने वालों को भूल जाऊं; पीता ज़रूर हूँ लेकिन थोड़ी देर यादों को सुलाने के लिए!

उम्र भर भी अगर सदाएं दें;​बीत कर वक़्त फिर नहीं मरते;​​सोच कर तोड़ना इन्हें साक़ी;​टूट कर जाम फिर नहीं जुड़ते।​

शराब पी के रात को हम उनको भुलाने लगे; शराब मे ग़म को मिलाने लगे; ये शराब भी बेवफा निकली यारो; नशे मे तो वो और भी याद आने लगे।

मैं तोड़ लेता अगर वो गुलाब होती! मैं जवाब बनता अगर वो सवाल होती! सब जानते हैं मैं नशा नहीं करता फिर भी पी लेता अगर वो शराब होती!

मौसम भी है उम्र भी शराब भी है; पहलू में वो रश्के-माहताब भी है; दुनिया में अब और चाहिए क्या मुझको; साक़ी भी है साज़ भी है शराब भी है।

कुछ सही तो कुछ खराब कहते हैं; लोग हमें बिगड़ा हुआ नवाब कहते हैं; हम तो बदनाम हुए कुछ इस कदर; कि पानी भी पियें तो लोग शराब कहते हैं।