ग़म इस कदर मिला कि घबरा के पी गए; ख़ुशी थोड़ी सी मिली तो मिला के पी गए; यूँ तो ना थे जन्म से पीने की आदत; शराब को तनहा देखा तो तरस खा के पी गए।

बोतलें खोल कर तो पी बरसों; आज दिल खोल कर भी पी जाए।

पूछिये मयकशों से लुत्फ़-ए-शराब; ये मज़ा पाक-बाज़ क्या जाने।

लानत है ऐसे पीने पर हज़ार बार; दो घूंट पीकर ठेके पर ही लंबे पसर गये।

न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है; अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है।

अजीब अँधेरा है साकी तेरी महफ़िल में; हमने दिल भी जलाया तो भी रौशनी न हुई!

ये इश्क भी नशा-ए-शराब जैसा है यारो; करें तो मर जाएँ और छोड़े तो किधर जाएँ।

आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में फ़िराक़ ; जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए।

हमारे ऐतबार की हद ना पूछ ग़ालिब; उसने दिन को रात कहा और हमने पैग बना लिया।

मेरे घर से मयखाना इतना करीब ना था दोस्त; कुछ लोग दूर हुए तो मयखाना करीब आ गया।

​यूँ तो ऐसा कोई ख़ास याराना नहीं ​है ​मेरा​;​ ​​शराब से...​ इश्क की राहों में तन्हा मिली ​ तो;​​​ हमसफ़र बन गई.......​

पी के रात को हम उनको भुलाने लगे; शराब मे ग़म को मिलाने लगे; ये शराब भी बेवफा निकली यारो; नशे मे तो वो और भी याद आने लगे।

फिर ना पीने की कसम खा लूँगा; साथ जीने की कसम खा लूँगा; एक बार अपनी आँखों से पिला दे साकी; शराफत से जीने की कसम खा लूँगा।

हर तरफ खामोशी का साया है; जिसे चाहते थे हम वो अब पराया है; गिर पङे है हम मोहब्बत की भूख से; और लोग कहते है कि पीकर आया है।

बैठे हैं दिल में ये अरमां जगाये; कि वो आज नजरों से अपनी पिलायें; मजा तो तब है पीने का यारो; इधर हम पियें और नशा उनको आये।