नशा हम किया करते है इलज़ाम शराब को दिया करते हैं; कसूर शराब का नहीं उनका है जिनका चेहरा हम जाम में तलाश किया करते हैं।

यह शायरी लिखना उनका काम नहीं; जिनके दिल आँखों में बसा करते हैं; शायरी तो वो शख्श लिखता है; जो शराब से नहीं कलम से नशा करता है।

हम तो जी रहे थे उनका नाम लेकर; वो गुज़रते थे हमारा सलाम लेकर; कल वो कह गए भुला दो हमको; हमने पूछा कैसे वो चले गए हाथों मे जाम देकर।

ग़म इस कदर बढे कि घबरा कर पी गया; इस दिल की बेबसी पर तरस खा कर पी गया; ठुकरा रहा था मुझे बड़ी देर से ज़माना; मैं आज सब जहां को ठुकरा कर पी गया!

ग़म इस कद्र बढे कि घबरा कर पी गया; इस दिल की बेबसी पर तरस खा कर पी गया; ठुकरा रहा था मुझे बड़ी देर से ज़माना; मैं आज सब जहां को ठुकरा कर पी गया!

​रात चुप चाप है पर चाँद खामोश नहीं; कैसे कह दूँ कि आज फिर होश नहीं; ऐसा डूबा हूँ मैं तुम्हारी आँखों में; हाथ में जाम है पर पीने का होश नहीं।

गम इस कदर मिला कि घबराकर पी गए हम; खुशी थोड़ी सी मिली उसे खुश होकर पी गए हम; यूं तो ना थे हम पीने के आदी; शराब को तन्हा देखा तो तरस खाकर पी गए हम।

हम अच्छे सही पर लोग ख़राब कहतें हैं; इस देश का बिगड़ा हुआ हमें नवाब कहते हैं; हम ऐसे बदनाम हुए इस शहर में; कि पानी भी पिये तो लोग उसे शराब कहते हैं!

महकता हुआ जिस्म तेरा गुलाब जैसा है; नींद के सफर में तू एक ख्वाब जैसा है; दो घूँट पी लेने दे आँखों के इस प्याले से; नशा तेरी आँखों का शराब के जाम जैसा है।

मेरे दिल के कोने से एक आवाज़ आती है; कहाँ गयी वो ज़ालिम जो तुझे तड़पाती है; जिस्म से रूह तक उतरने की थी ख्वाहिश तेरी; और अब एक शराब है जो तेरा साथ निभाती है।

ना पीने का शौक था ना पिलाने का शौक था; हमे तो सिर्फ नज़र मिलाने का शौक था; पर क्या करे यारो हम नज़र ही उनसे मिला बैठे; जिन्हें सिर्फ नज़रों से पिलाने का शौक था।

तुम क्या जानो शराब कैसे पिलाई जाती है! खोलने से पहले बोतल हिलाई जाती है! फिर आवाज़ लगायी जाती है आ जाओ दर्दे दिलवालों! यहाँ दर्द-ऐ-दिल की दावा पिलाई जाती है!

बोतल पे बोतल पीने से क्या फायदा मेरे दोस्त; रात गुजरेगी तो उतर जाएगी! पीना है तो सिर्फ एक बार किसी की बेवफाई पियो; प्यार की कसम उम्र सारी नशें में गुजर जाएगी!

आप को इस दिल में उतार लेने को जी चाहता है; खूबसूरत से फूलों में डूब जाने को जी चाहता है; आपका साथ पाकर हम भूल गए सब मैखाने; क्योकि उन मैखानो में भी आपका ही चेहरा नज़र आता है।

नशा पिलाके गिराना तो सबको आता है; मज़ा तो जब है कि गिरतों को थाम ले साकी; जो बादाकश थे पुराने वो उठते जाते हैं; कहीं से आबे-बक़ा-ए-दवाम ले साकी; कटी है रात तो हंगामा-गुस्तरी में तेरी; सहर क़रीब है अल्लाह का नाम ले साकी।