अब तो यूँ हो गए हैं मदहोश तेरी निगाह देख कर; सदियों से पिये बैठे हैं जैसे जाम तेरी निगाह देख कर।

पलकों को जब-जब हमने झुकाया है; बस एक ही ख्याल आया है; कि जिस खुदा ने तुम्हें बनाया है; तुम्हें धरती पर भेजकर वो कैसे जी पाया है!

क्या तारीफ़ करूँ आपकी बात की; हर लफ्ज़ में जैसे खुशबू हो ग़ुलाब की; रब ने दिया है इतना प्यारा सनम; हर दिन तमन्ना रहती है मुलाक़ात की।

नशीली आँखों से वो जब हमें देखते हैं; हम घबरा कर आँखें झुका लेते हैं; कौन मिलाये उन आँखों से आँखें; सुना है वो आँखों से अपना बना लेते हैं।

दीवाने हैं तेरे नाम के इस बात से इंकार नहीं; कैसे कहें कि हमें तुमसे प्‍यार नहीं; कुछ तो कसूर है आपकी आँखों का; हम अकेले तो गुनहगार नहीं।

सच कहते हैं लोग इश्क़ पर जोर नहीं; झुके जमाने के आगे इश्क़ कमजोर नहीं; यूँ तो बसते हैं हसीं लाखों इस ज़मीं पर; मगर इस जहान में तुमसे बढ़कर और नहीं।

कुछ इस तरह से वो मुस्कुराते हैं; कि परेशान लोग उन्हें देख खुश हो जाते हैं; उनकी बातों का अजी क्या कहिये; अल्फ़ाज़ फूल बनकर होंठों से निकल आते हैं।

चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है; जब तुम मुझे अपना कहते हो तो अपने पे गुरूर आ जाता है; तुम हुस्न की खुद एक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं; महफ़िल में तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है।

किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी झूम के आई घटा टूट के बरसा पानी!

क़यामत है तेरा यूँ बन सँवर के आना; हमारी छोड़ो आईने पे क्या गुज़रती होगी!

मेरी निगाह-ए-शौक़ भी कुछ कम नहीं मगर; फिर भी तेरा शबाब तेरा ही शबाब है।

आईने में क्या चीज़ अभी देख रहे थे; फिर कहते हो अल्लाह की कुदरत नहीं देखी।

अच्छी सूरत नज़र आते ही मचल जाता है; किसी आफ़त में न डाले दिल-ए-नाशाद मुझे।

खींचती है मुझे कोई कशिश उसकी तरफ; वरना मैं बहुत बार मिला हूँ आखरी बार उससे!

तुम्हारा नूर ही है जो पड़ रहा चेहरे पर; वर्ना कौन देखता मुझे इस अंधेरे में!