न आह सुने दी न तड़प दिखाई दी..
फ़ना हो गए तेरे इश्क में बड़ी ख़ामोशी के साथ..!

बस एक ख़्वाहिशें ही तो बस में मेरे,
वरना लकीरों पर मेरा ज़ोर कहाँ ।।

तुम्हारे पास ही होगा, जरा फिर से ढुंढो
मेरे सीने से दिल आखिर गया कहा

हमारा तो शौक है तलवार रखने का
बंन्दुक के लिए तो बच्चे भी जिद करते है

आँसू बहा बहा के भी होते नही हैं कम
कितनी अमीर होती हैं आँखें गरीब की

इश्क का धंधा ही बंघ कर दिया साहेब
मुनाफे में जेब जले और घाटे में दिल

अंजान तुम बने रहे ये और बात है
ऐसा तो क्या है कि तुमको हमारी खबर नहीं

गुज़र गया आज का दिन पहले की तरह
ना हम को फुरसत मिली ना उनको ख्याल आया

पतंग सी है जिंदगी कहा तक जायेगी...
रात हो या उम्र एक न एक दिन कट जायेगी..!!

काबील नजरो के लीये हम जान दे दे पर
कोई गुरुर से देखे ये हमे मंजुर नही

ये मासूमियत का कौन सा अन्दाज़ है,
पर काट कर कह दिया कि,अब तुम आजाद हो।

मौजूद थी उदासी अभी तक पिछली रात की
बहला था दिल ज़रा सा की फिर रात हो गई

लगा के आग दिल में चले हो कहाँ हमदम
अभी तो राख उड़ने पे तमाशा और भी होगा

जो ना समझ है वो ही मोहब्बत करता है
वो मोहब्बत ही क्या जो समझ में आ जाए

अब तक याद कर रही हो, पागल हो तुम.
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उसने तो तेरे बाद भी हजारों भुला दिय