मालूम नहीं क्यूँ मगर कभी-कभी
अल्फाजों से ज्यादा मुझे तेरा नाम लिखना अच्छा लगता है

तुझे क्या लगा तु मुझे छोड कर चली जाएगी तो मैं मर जाऊंगा
अरे पगली लडकी है तु OxyGeN नहीं
N.K.G

इरादा कत्ल का था तो मेरा सर कलम कर देते
क्यू इश्क मे डाल कर तुने हर साँस पर मौत लिख दी

जब थोड़ी फुर्सत मिले मन की बात कह दीजिए
बहुत खामोश रिश्ते ज्यादा दिनों तक नहीं रहते

मेरे जनाजे में सारा शहर निकला मगर कम्खत वोह ना निकली
जिसके लिए मेरा जनाजा निकला था

अजीब मजाक करती हैं यह नौकरी
काम मजदूरों वाले कराती हैं और लोग साहब कहकर बुलाते हैं

जरा बताओ तो किसे गुरुर है अपनी दौलत पर
चलो उसे बादशाहों से भरा कब्रस्तान दिखाता हु

आज कुछ नही है मेरे शब्दों के गुलदस्ते में....
कभी-कभी मेरी ख़ामोशियाँ भी पढ़ लिया करो....

रिश्वत भी नहीं लेती कम्बख्त जान छोड़ने
की….!
ये तेरी याद मुझे बहुत ईमानदार लगती है.

हमारा तर्जुबा हमें ये भी सिखाता है
जो जितना मक्खन लगाता है वो उतना ही चूना लगाता है

शेर को सवा शेर कही ना कही जरुर मिलता है,
और रही बात हमारी तो हम तो बचपन से ही शिकारी है..

क्या लिखूँ अपनी जिंदगी के बारे में दोस्तों
वो लोग ही बिछड़ गए जो जिंदगी हुआ करते थे

तुम न लगा पाओगे अंदाजा मेरी बर्बादियों का
तुमने देखा ही कहा है मुझे शाम होने के बाद

मत पूछो कैसे गुजरता है हर पल तुम्हारे बिना
कभी बात करने की हसरत कभी देखने की तमन्ना

देख ली ना मेरे आँसू की ताकत तुमने
रात मेरी आँखें नम थी
.
आज तेरा सारा शहर भीगा हैं ..