साग़र से लब लगा के... साग़र से लब लगा के बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; सहन-ए-चमन में आके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; आ जाओ और भी ज़रा नज़दीक जान-ए-मन; तुम को क़रीब पाके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; होता कोई महल भी तो क्या पूछते हो फिर; बे-वजह मुस्कुरा के बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; साहिल पे भी तो इतनी शगुफ़ता रविश न थी; तूफ़ाँ के बीच आके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; वीरान दिल है और अदम ज़िन्दगी का रक़्स; जंगल में घर बनाके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी।

इक खिलौना टूट जाएगा... इक खिलौना टूट जाएगा नया मिल जाएगा; मैं नहीं तो कोई तुझ को दूसरा मिल जाएगा; भागता हूँ हर तरफ़ ऐसे हवा के साथ साथ; जिस तरह सच मुच मुझे उस का पता मिल जाएगा; किस तरह रोकोगे अश्कों को पस-ए-दीवार-ए-चश्म; ये तो पानी है इसे तो रास्ता मिल जाएगा; एक दिन तो ख़त्म होगी लफ़्ज़ ओ मानी की तलाश; एक दिन तो मुझ को मेरा मुद्दा मिल जाएगा; छोड़ ख़ाली घर को आ बाहर चलें घर से अदीम ; कुछ नहीं तो कोई चेहरा चाँद सा मिल जाएगा।

एक खिलौना टूट जाएगा... एक खिलौना टूट जाएगा नया मिल जाएगा; मैं नहीं तो कोई तुझ को दूसरा मिल जाएगा; भागता हूँ हर तरफ़ ऐसे हवा के साथ साथ; जिस तरह सच मुच मुझे उस का पता मिल जाएगा; किस तरह रोकोगे अश्कों को पस-ए-दीवार-ए-चश्म; ये तो पानी है इसे तो रास्ता मिल जाएगा; एक दिन तो ख़त्म होगी लफ़्ज़ ओ मानी की तलाश; एक दिन तो मुझ को मेरा मुद्दा मिल जाएगा; छोड़ ख़ाली घर को आ बाहर चलें घर से अदीम ; कुछ नहीं तो कोई चेहरा चाँद सा मिल जाएगा।

एक क़तरा मलाल भी बोया नहीं गया; वो खौफ था के लोगों से रोया नहीं गया; यह सच है के तेरी भी नींदें उजड़ गयीं; तुझ से बिछड़ के हम से भी सोया नहीं गया; उस रात तू भी पहले सा अपना नहीं लगा; उस रात खुल के मुझसे भी रोया नहीं गया; दामन है ख़ुश्क आँख भी चुप चाप है बहुत; लड़ियों में आंसुओं को पिरोया नहीं गया; अलफ़ाज़ तल्ख़ बात का अंदाज़ सर्द है; पिछला मलाल आज भी गोया नहीं गया; अब भी कहीं कहीं पे है कालख लगी हुई; रंजिश का दाग़ ठीक से धोया नहीं गया।

राज़े-उल्फ़त छुपा के​...​​​राज़े-उल्फ़त ​छुपा के देख लिया​;दिल बहुत कुछ​ जला के देख लिया​;और क्या देखने को बाक़ी है​;​ ​​ आप से दिल​ लगा के देख लिया;​​​​वो मिरे हो के भी​ मेरे न हुए​;​​उनको अपना बना के देख लिया;​​​​​आज उनकी नज़र में​ कुछ हमने​;​​सबकी नज़रें बचा के​ देख लिया;​​​​​आस उस दर से​ टूटती ही नहीं​;​​​जा के देखा न जा के देख लिया;​​​​​ फ़ैज़ तक़्मील-ए-ग़म भी हो न सकी​;​​​​इश्क़ को आज़मा के​ देख लिया​।

तू इस क़दर मुझे... तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है; तुझे अलग से जो सोचू अजीब लगता है; जिसे ना हुस्न से मतलब ना इश्क़ से सरोकार; वो शख्स मुझ को बहुत बदनसीब लगता है; हदूद-ए-जात से बाहर निकल के देख ज़रा; ना कोई गैर ना कोई रक़ीब लगता है; ये दोस्ती ये मरासिम ये चाहते ये खुलूस; कभी कभी ये सब कुछ अजीब लगता है; उफक़ पे दूर चमकता हुआ कोई तारा; मुझे चिराग-ए-दयार-ए-हबीब लगता है; ना जाने कब कोई तूफान आयेगा यारो; बलंद मौज से साहिल क़रीब लगता है।

तू इस क़दर मुझे... तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है; तुझे अलग से जो सोचू अजीब लगता है; जिसे ना हुस्न से मतलब ना इश्क़ से सरोकार; वो शख्स मुझ को बहुत बदनसीब लगता है; हदूद-ए-जात से बाहर निकल के देख ज़रा; ना कोई गैर ना कोई रक़ीब लगता है; ये दोस्ती ये मरासिम ये चाहते ये खुलूस; कभी कभी ये सब कुछ अजीब लगता है; उफक़ पे दूर चमकता हुआ कोई तारा; मुझे चिराग-ए-दयार-ए-हबीब लगता है; ना जाने कब कोई तूफान आयेगा यारो; बलंद मौज से साहिल क़रीब लगता है।

कभी नजरे मिलाने में...कभी नजरे मिलाने में जमाने बीत जाते है;कभी नजरे चुराने में जमाने बीत जाते है;किसी ने आँखे भी ना खोली तो सोने की नगरी में;किसी को घर बनाने में जमाने बीत जाते है;कभी काली सियाह राते हमें एक पल की लगती है;कभी एक पल बिताने में ज़माने बीत जाते है; कभी खोला दरवाजा सामने खड़ी थी मंजिल; कभी मंजिल को पाने में जमाने बीत जाते है; एक पल में टूट जाते है उम्र भर के वो रिश्ते; जिन्हें बनाने में जमाने बीत जाते है।

​मैं उसके चेहरे को... मैं उसके चेहरे को दिल से उतार देती हूँ; मैं कभी कभी तो खुद को भी मार देती हूँ;​​​ ये मेरा हक़ है कि मैं उसको थोडा दुःख भी दूं; मैं चाहत भी तो उसे बेशुमार देती हूँ;​​​ खफा वो रह नहीं सकता लम्हा भर भी; ​मैं बहुत पहले ही उसको पुकार लेती हूँ;​​​ मुझे सिवा उसके कोई भी काम नहीं सूझता; वो जो भी करता है मैं सब हिसाब लेती हूँ;​​​​​ वो सभी नाज़ उठाता है मैं जो भी कहती हूँ; वो जो भी कहता है मैं चुपके से मान लेती हूँ।

प्यास वो दिल की​...प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं​;​कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं​;​बेरुख़ी इससे बड़ी और भला क्या होगी​;​एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं​;​​ रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने​;​आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं​;​​ सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने​;​ वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं​;​​ तुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शख़्स​;​ उसने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं​।

कोई कैसा हम सफर है... कोई कैसा हम सफर है ये अभी से मत बताओ; अभी क्या पता किसी का कि चली नहीं है नाव; ये ज़रूरी तो नहीं है कि सदा रहे मरासिम; ये सफर की दोस्ती है इसे रोग मत बनाओ; मेरे चारागर बहुत हैं ये खलिश मगर है दिल में; कोई ऐसा हो कि जिस को हों अज़ीज़ मेरे घाव; तुम्हें आईना गिरी में है बहुत कमाल हासिल; मेरा दिल है किरच किरच इसे जोड़ के दिखाओ; मुझे क्या पड़ी है साजिद के पराई आग मांगू; मैं ग़ज़ल का आदमी हूँ मेरे अपने हैं अलाव।

मोहब्बतों में दिखावे की​...मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला​;​​अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला​;​​​घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे;​बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला​;​ ​​तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था​;​​फ़िर उस के बाद मुझे कोई अजनबी न मिला​;​​ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैनें​;​​बस एक शख्स को माँगा मुझे वही न मिला​; ​बहुत अजीब है ये नजदीकियों की दूरी भी​; ​​वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला।

झूठी बुलंदियों का धुँआ​...​​झूठी बुलंदियों का धुँआ पार कर के आ​;​​​क़द नापना है मेरा तो छत से उतर के आ;​​​​इस पार मुंतज़िर हैं तेरी खुश-नसीबियाँ​;​लेकिन ये शर्त है कि नदी पार कर के आ;​​​ ​​​कुछ दूर मैं भी दोशे-हवा पर सफर करूँ​;​कुछ दूर तू भी खाक की.. सुरत बिखर के आ​;​​​मैं धूल में अटा हूँ मगर तुझको क्या हुआ;​​​ आईना देख जा ज़रा घर जा सँवर के आ;​​सोने का रथ फ़क़ीर के घर तक न आयेगा;​​​कुछ माँगना है हमसे तो पैदल उतर के आ​।

दिल में अब यूँ​...​​ ​दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते है;​ जैसे बिछड़े हुये काबे में सनम आते है​;​​ रक़्स-ए-मय तेज़ करो साज़ की लय तेज़ करो​;​ सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते है​;​​ और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो ​;​ दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते है​;​​ इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन ​;​ मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते है​;​​ कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग;​ वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते है। ​

ख़ून बर कर मुनासिब... ख़ून बर कर मुनासिब नहीं दिल बहे; दिल नहीं मानता कौन दिल से कहे; तेरी दुनिया में आए बहुत दिन रहे; सुख ये पाया कि हम ने बहुत दुख सहे; बुलबुलें गुल के आँसू नहीं चाटतीं; उन को अपनी ही मरग़ूब हैं चहचहे; आलम-ए-नज़ा में सुन रहा हूँ में क्या; ये अज़ीज़ों की चीख़ें हैं कया क़हक़हे; इस नए हुस्न की भी अदाओं पे हम; मर मिटेंगे ब-शर्ते-के ज़िंदा रहे; तुम हफ़ीज अब घिसटने की मंज़िल में हो; दौर-ए-अय्याम पहिया है ग़म हैं रहे।