औरों को दिखाने के लिए हंसता हूं मैं
गम को भुलाने के लिए हंसता हूं मैं
मेरे हंसने की हकीकत को क्या समझोगी
खुद को भुलाने के लिए हंसता हूं मैं

​हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली​; कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली​;​ सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ​; वो जिंदगी ही क्या जो छाँव​-​छाँव चली​।

हसरत है सिर्फ़ तुम्हे पाने की,
और कोई ख्वाईश नही इस दीवाने की,
शिकवा मुझे तुमसे नही खुदा से है,
क्या ज़रूरत थी तुम्हे इतना खूबसरत बनाने की ..!
er kasz

जीना चाहता हूँ मगर जिनदगी राज़ नहीं आती
मरना चाहता हूँ मगर मौत पास नहीं आती
उदास हूँ इस जिनदगी से क्युकी उसकी यादे भी तो तरपाने से बाज नहीं आती

दिल पे क्या गुज़री वो अनजान क्या जाने
प्यार किसे कहते है वो नादान क्या जाने
हवा के साथ उड़ गया घर इस परिंदे का
कैसे बना था घोसला वो तूफान क्या जाने

कागज़ की कश्ती से पार जाने की ना सोच; चलते हुए तुफानो को हाथ में लाने की ना सोच; दुनिया बड़ी बेदर्द है इस से खिलवाड़ ना कर; जहाँ तक मुनासिब हो दिल बचाने की सोच।

दर्द दे कर इश्क़ ने हमे रुला दिया
जिस पर मरते थे उसने ही हमे भुला दिया
हम तो उनकी यादों में ही जी लेते थे
मगर उन्होने तो यादों में ही ज़हेर मिला दिया

मेरी महोब्बत की बस इतनी कहानी है
एक टूटीहुई कश्ती और सूखा हुआ पानी है
एक गुलाब उनकी किताब में दम तोड़ चुका
और उनको याद ही नहीं कि यह किसकी निशानी है

दर्द होता है मगर शिकवा नहीं करते
कौन कहता है की हम वफा नहीं करते
आखिर क्‍यूं नहीं बदलती तक़दीर आशिक़ की
क्या मुझको चाहने वाले मेरे लिये दुआ नहीं करते

​तुम यहाँ धरती पर लकीरें खींचते हो​;​हम वहाँ अपने लिये नये आसमान ढूंढते हैं;​​तुम बनाते जाते हो पिंजड़े पे पिंजड़ा​;​हम अपने पंखों में ​नयी उड़ान ढूंढते हैं।

हम नहीं जीत सके उनसे वो ऐसी शरत लगाने लगे
प्यारी सी आँखो को मेरी आँखो से लडाने लगे
हम शायद जीत भी जाते पर पलके हमने तब झपकाईं
जब उनकी पलकों से आँसु आने लगे

ज़िन्दगी मिलती हैं एक बार मौत आती हैं एक बार
दोस्ती होती हैं एक बार प्यार होता हैं एक बार
दिल टूटता हैं एक बार जब सब कुछ होता हैं एक बार
तो फिर आपकी याद क्यों आती हैं बार बार

जिंदगी में हद से ज्यादा ख़ुशी और हद से ज्यादा गम का कभी किसी से इज़हार मत करना,
क्योंकि, ये दुनिया बड़ी ज़ालिम है हद से ज्यादा ख़ुशी पर नज़र और हद से ज्यादा गम पर नमक लगाती है.
=RPS

वो अपने मेहंदी वाले हाथ मुझे दिखा कर रोई
अब मैं हुँ किसी और की, ये मुझे बता कर रोई
पहले कहती थी कि नहीं जी सकती तेरे बिन
आज फिर से वो बात दोहरा कर रोई
कैसे कर लुँ उसकी महोब्बत पे शक यारो
वो भरी महफिल में मुझे गले लगा कर रोई

तेरी डोली उठी, मेरी मैय्‍यत उठी
फूल तुझ पर भी बरसे फूल मुझ पर भी बरसे
फर्क सिर्फ इतना सा था तू सज गई, मुझे सजाया गया
तू भी घर को चली मैं भी घर को चला
फर्क सिर्फ इतना सा था तू उठ के गई मुझे उठाया गया
महफि‍ल वहां भी थी लोग यहां भी थे
फर्क सिर्फ इतना सा था उनका हंसना वहां, इनका रोना