इश्क इश्क का जमाने में फर्क क्या होता है
कही इश्क की जरूरत होती है
और कही जरूरत का इश्क होता है
er kasz
इश्क इश्क का जमाने में फर्क क्या होता है
कही इश्क की जरूरत होती है
और कही जरूरत का इश्क होता है
er kasz
कुछ तो बात होगी मेरे शायरी के अल्फाज़ो में
यूँही तो नहीं दुनियां मेरी शायरी को अपने स्टेटस लगाती है
मिला है धोखा पूरा यकीं था उनके आँसुओं ने पर पैदा किया भ्रम था
भ्रम टूटा भी तो तब फिर जीना चाहने लगे थे जब
नज़र को नज़र की खबर ना लगे कोई अच्छा भी इस कदर ना लगे
आपको देखा है बस उस नज़र से जिस नज़र से आपको नज़र ना लगे
प्यारा सा एसास हो तुम हर पल मेरे पास हो तुम जीना की इक आस हो तुम
मन का इक विशवास हो तुम शायद इस लिए कुछ खास हो तुम
अपनों से करके किनारा राह के मुसाफिरों को अपना कहने वाला
मुड़ के आएगा जिस दिन बिखर चुका होगा तेरे अपनों का मेला
तुम्हे इंसान पहचानना बिलकुल नहीं आता
हमेशा कहते रहे वो सच खुद उन्हें पहचानने में अपनी आधी ज़िन्दगी लगा दी मैंने
कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्क़िल है
कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्क़िल है
यहाँ परियों का मजमा है वहाँ हूरों की महफ़िल है
इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं
हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है