हवा से कह दो कि खुद को आजमा के दिखाये बहुत
चिराग बुझाती है एक जला के दिखाये
हवा से कह दो कि खुद को आजमा के दिखाये बहुत
चिराग बुझाती है एक जला के दिखाये
ना कोई हमदर्द था ना ही कोई दर्द था
फिर एक हमदर्द मिला उसी से सारा दर्द मिला
सुकून मिलता है दो लफ्ज़ कागज पर उतार कर
चीख भी लेती हूँ और आवाज भी नहीं होती
झुठ बोलकर तो मैं भी दरिया पार कर जाता
मगर डूबो दिया मुझे सच बोलने की आदत ने
!!!...कल तुझसे बिछड़नेका फैसला कर लिया था...!!!!!!...आज
अपने ही दिल को रिश्वत दे रहा हूँ...!!!
उसको गैरोँ से बात करते देखा तो तकलीफ हुई
फिर याद आया हम कौन सा उसके अपने थे
कौन कौन आता है रोने तेरे दर पे ग़ालिब
बस एक बार अपनी मौत की अफवाह उडा के देख
कटी पतंग का रूख़ तो था मेरे घर की तरफ
मगर उसे भी लूट लिया ऊंचे मकान वालों ने
उनकी नजरो में फर्क अब भी नहीं पहले मुड़ के देखते थे
और अब देख के मुड़ जाते हैं
रिश्ते अगर बढ़ जाये हद से तो ग़म मिलते है
इसलिए आजकल हम हर शख्स से कम मिलते है
मुसीबतो से उभरती है शख्सियत यारो,
जो चट्टानों से न उलझे वो झरना किस काम का..
कभी भी ख़ुशी मे शायरी नहीं लिखी जाती है
ये वो धुन है जो दिल टूटने पर बनती है
भारत का राष्ट्रीय खेल शायद अब "दिल" कर देना चाहिये? बहुत लोग खेलते हैं इससे...
कभी भी ख़ुशी मे शायरी नहीं लिखी जाती है
ये वो धुन है जो दिल टूटने पर बनती है
दिल जलाने की आदत उनकी आज भी नहीं गयी
वो आज भी फूल बगल वाली कबर पर रख जाते हैं