वफ़ा किसी पे फ़र्ज़ तो नहीं है लेकिन...
हो सके तो हमारी मुहब्बत की लाज रखना...!!!

मुसीबतो से उभरती है शख्सियत यारो,
जो चट्टानों से न उलझे वो झरना किस काम का..

कटी पतंग का रूख़ तो था मेरे घर की तरफ
मगर उसे भी लूट लिया ऊंचे मकान वालों ने

अभी भी हाथ पकड ले पगली अभी तेरा हो सकता हूँ
वरना भीड़ बहुत है खो भी सकता हूँ

दिल जलाने की आदत उनकी आज भी नहीं गयी
वो आज भी फूल बगल वाली कबर पर रख जाते हैं

घटा में छुपके सितारे फ़ना नहीं होते
अँधेरी रात में दिल को दिये बनाके जियो

रोने से अगर सवर जाते हालात किसी के
तो मुझसे ज्यादा खुशनसीब कोई और नही होता

अगर तुम समझ पाते मेरी चाहत की इन्तहा
तो हम तुमसे नही तुम हमसे मोहब्बत करते

ऐसे कुछ दिन भी मेरी जिंदगी ने पाए हैं
आंखें जब रोती रहीं होंठ मुस्कराए हैं

जीने की तमन्ना तो बहुत है मुझे....
मगर कोई आता ही नहीं जिंदगी में जिंदगी बनकर....

तहज़ीब में भी उसकी क्या ख़ूब अदा थी..
नमक भी अदा किया तो ज़ख़्मों पर छिड़ककर..

ख्वाईशे कम पड गई तो ख्वाबो को जुटा दीया,
कुछ वो लुट गए कुछ हमने खुद लुटा दिया !

बस तुम्हें पाने की तमन्ना नही रही
मोहब्बत तो आज भी तुम्हें बेसुमार करते है

वो छोटी छोटी उड़ानों पे गुरुर नहीं करता
जो परिंदा अपने लिये आसमान ढूँढ़ता है

इंसान की ख्वाहिशों की कोई इंतहा नही
दो गज़ ज़मीन भी चाहिये दो गज़ कफन के बाद