हम प्यार तो उन्ही से.... हम प्यार तो उन्ही से करते है; पर अब ये जताना छोड़ दिया; हम उनसे कभी रूठे ही नहीं; और उसने भी मनाना छोड़ दिया; मरना भी मुश्किल है जिस शख्श के बगैर्; उस शक़्स् ने ख्वाबो में भी आना छोड़ दिया; ऱोना तो कभी हमें आता ही ना था; पर अब हमने मुस्कराना छोड़ दिया; सब पूछ्ते है कि हम क्यों लिखते नहीं; कैसे कहे कि ज़ख्मो को कागज़ पे सजाना छोड दिया।
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फ़राज़ अब कोई सौदा... फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं; मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं; लब-ओ-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला; मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं; मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत से बदगुमाँ न हो ; जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूँ भी नहीं; फ़राज़ जैसे कोई दिया तुर्बत-ए-हवा चाहे है; तू पास आये तो मुमकिन है मैं रहूँ भी नहीं।
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तप कर गमों की आग में तप कर गमों की आग में कुंदन बने हैं हम; खुशबू उड़ा रहा दिल चंदन से सने हैं हम; रब का पयाम ले कर अंबर पे छा गए; बिखरा रहे खुशी जग बादल घने हैं हम; सच की पकड़ के बाँह ही चलते रहे सदा; कितने बने रकीब हैं फ़िर भी तने हैं हम; छुप कर करो न घात रे बाली नहीं हूँ मैं; हमला करो कि अस्त्र बिना सामने हैं हम; खोये किसी की याद में मदहोश है किया; छेड़ो न साज़ दिल के हुए अनमने हैं हम।
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वफ़ा के ख्वाब... वफ़ा के ख्वाब मुहब्बत का आसरा ले जा; अगर चला है तो जो कुछ मुझे दिया है ले जा; मक़ाम-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ आ गया है फिर जानम; यह ज़ख़्म मेरे सही तु तीर उठा ले जा; यही है क़िस्मत-ए-सहारा यही करम तेरा; कि बूँद-बूँद अदा कर घटा-घटा ले जा; गुरुर-ए-दोस्त से इतना भी दिलशिकस्ता ना हो; फिर उठ के सामने दामन-ए-इल्तजा ले जा; नादमतें हों तो सर बार-ए-दोष होता है; फ़र्ज़ जान के एवज़ आबरू बचा ले जा।
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दिल गया रौनक-ए-हयात दिल गया रौनक-ए-हयात गई; ग़म गया सारी कायनात गई; दिल धड़कते ही फिर गई वो नज़र; लब तक आई न थी कि बात गई; उनके बहलाए भी न बहला दिल; गएगां सइये-इल्तफ़ात गई; मर्गे आशिक़ तो कुछ नहीं लेकिन; इक मसीहा-नफ़स की बात गई; हाय सरशरायां जवानी की; आँख झपकी ही थी के रात गई; नहीं मिलता मिज़ाज-ए-दिल हमसे; ग़ालिबन दूर तक ये बात गई; क़ैद-ए-हस्ती से कब निजात जिगर ; मौत आई अगर हयात गई।
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नींद की ओस से... नींद की ओस से पलकों को भिगोये कैसे; जागना जिसका मुकद्दर हो वो सोये कैसे; रेत दामन में हो या दश्त में बस रेत ही है; रेत में फस्ल-ए-तमन्ना कोई बोये कैसे; ये तो अच्छा है कोई पूछने वाला न रहा; कैसे कुछ लोग मिले थे हमें खोये कैसे; रूह का बोझ तो उठता नहीं दीवाने से; जिस्म का बोझ मगर देखिये ढोये कैसे; वरना सैलाब बहा ले गया होगा सब कुछ; आँख की ज़ब्त की ताकीद है रोये कैसे।
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मैं आप लोगों ... मैं आप लोगों की दी हुई; मुहब्बत पर इठलाता हूँ; इतने दिलों में रहता हूँ कि; घर का पता भूल जाता हूँ; नहीं हुनर किसी में मेरे जैसा; लोगों को उंगलियो पर नाचता हूँ; कुछ लोग मुझे फरिश्ता कहते है; नफरत के स्कूलों में मुहब्बत पढता हूँ; खुशियों के बाज़ार में दूकान सजी है; आवाज लगा कर सौदागरों को बुलाता हूँ; नहीं यकीं तो तु मुझसे मिलकर देख; मैं तुझे कैसे अपना बनता हूँ।
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तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती; ख़ुद को इतनी भी अज़िय्यत नहीं दी जा सकती; जानते हैं कि यक़ीं टूट रहा है दिल पर; फिर भी अब तर्क ये वहशत नहीं की जा सकती; हब्स का शहर है और उस में किसी भी सूरत; साँस लेने की सहूलत नहीं दी जा सकती; रौशनी के लिए दरवाज़ा खुला रखना है; शब से अब कोई इजाज़त नहीं ली जा सकती; इश्क़ ने हिज्र का आज़ार तो दे रक्खा है; इस से बढ़ कर तो रिआयत नहीं दी जा सकती।
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अजनबी ख्वाहिशें... अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ;ऐसे जिद्दी हैं परिन्दें कि उड़ा भी न सकूँ;फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया;ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ;मेरी ग़ैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे;उसने इस तरह बुलाया कि मैं जा भी न सकूँ;इक न इक रोज़ कहीं ढूंढ ही लूँगा तुझको;ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ।
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अगर तलाश करूँ... अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा; मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा; तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा; मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा; ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो; मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा; मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ; अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा; तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है; तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा।
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पूछा किसी ने हाल... पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए; पानी के अक्स चाँद का देखा तो रो दिए; नग़्मा किसी ने साज़ पे छेड़ा तो रो दिए; ग़ुंचा किसी ने शाख़ से तोड़ा तो रो दिए; उड़ता हुए ग़ुबार सर-ए-राह देख कर; अंजाम हम ने इश्क़ का सोचा तो रो दिए; बादल फ़ज़ा में आप की तस्वीर बन गए; साया कोई ख़याल से गुज़रा तो रो दिए; रंग-ए-शफ़क़ से आग शगूफ़ों में लग गई; साग़र हमारे हाथ से छलका तो रो दिए।
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वफ़ा के शीश महल... वफ़ा के शीश महल में सजा लिया मैंने; वो एक दिल जिसे पत्थर बना लिया मैंने; यह सोच कर कि ना हो ताक में ख़ुशी कोई; ग़मों की ओट में खुद को छुपा लिया मैंने; कभी ना ख़त्म किया मैंने रौशनी का मुहाज़; अगर चिराग बुझा दिल जला लिया मैंने; कमाल यह है कि जो दुश्मन पर चलाना था; वो तीर अपने कलेजे पे खा लिया मैंने; क़ातिल जिसकी अदावत में एक प्यार भी था; उस आदमी को गले से लगा लिया मैंने।
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पूछा किसी ने हाल... पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए; पानी में अक्स चाँद का देखा तो रो दिए; नग़्मा किसी ने साज़ पे छेड़ा तो रो दिए; ग़ुंचा किसी ने शाख़ से तोड़ा तो रो दिए; उड़ता हुए ग़ुबार सर-ए-राह देख कर; अंजाम हम ने इश्क़ का सोचा तो रो दिए; बादल फ़ज़ा में आप की तस्वीर बन गए; साया कोई ख़याल से गुज़रा तो रो दिए; रंग-ए-शफ़क़ से आग शगूफ़ों में लग गई; साग़र हमारे हाथ से छलका तो रो दिए।
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छेड़ने का तो मज़ा तब है कहो और सुनो; बात में तुम तो ख़फ़ा हो गये लो और सुनो; तुम कहोगे जिसे कुछ क्यूँ न कहेगा तुम को; छोड़ देवेगा भला देख तो लो और सुनो; यही इंसाफ़ है कुछ सोचो तो अपने दिल में; तुम तो सौ कह लो मेरी एक न सुनो और सुनो; आफ़रीं तुम पे यही चाहिए शाबाश तुम्हें; देख रोता मुझे यूँ हँसने लगो और सुनो; बात मेरी नहीं सुनते जो अकेले मिल कर; ऐसे ही ढँग से सुनाऊँ के सुनो और सुनो।
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तुझे उदास किया... तुझे उदास किया खुद भी सोगवार हुए; हम आप अपनी मोहब्बत से शर्मसार हुए; बला की रौ थी नदीमाने-आबला-पा को; पलट के देखना चाहा कि खुद गुबार हुए; गिला उसी का किया जिससे तुझपे हर्फ़ आया; वरना यूँ तो सितम हम पे बेशुमार हुए; ये इन्तकाम भी लेना था ज़िन्दगी को अभी; जो लोग दुश्मने-जाँ थे वो गम-गुसार हुए; हजार बार किया तर्के-दोस्ती का ख्याल; मगर फ़राज़ पशेमाँ हर एक बार हुए।
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