घर का रस्ता... घर का रस्ता भी मिला था शायद; राह में संग-ए-वफ़ा था शायद; इस क़दर तेज़ हवा के झोंके; शाख़ पर फूल खिला था शायद; जिस की बातों के फ़साने लिखे; उस ने तो कुछ न कहा था शायद; लोग बे-मेहर न होते होंगे; वहम सा दिल को हुआ था शायद; तुझ को भूले तो दुआ तक भूले; और वही वक़्त-ए-दुआ था शायद; ख़ून-ए-दिल में तो डुबोया था क़लम; और फिर कुछ न लिखा था शायद; दिल का जो रंग है ये रंग-ए- अदा पहले आँखों में रचा था शायद।
Like (0)Dislike (0)
मैं बुरा ही सही भला न सही; पर तेरी कौन सी जफ़ा न सही; दर्द-ए-दिल हम तो उन से कह गुज़रे; गर उन्हों ने नहीं सुना न सही; शब-ए-ग़म में बला से शुग़ल तो है; नाला-ए-दिल मेरा रसा न सही; दिल भी अपना नहीं रहा न रहे; ये भी ऐ चर्ख़-ए-फ़ित्ना-ज़ा न सही; क्यूँ बुरा मानते हो शिकवा मेरा; चलो बे-जा सही ब-जा न सही; उक़दा-ए-दिल हमारा या क़िस्मत; न खुला तुझ से ऐ सबा न सही; वाइज़ो बंद-ए-ख़ुदा तो है ऐश ; हम ने माना वो पारसा न सही।
Like (0)Dislike (0)
सीने में जलन... सीने में जलन आँखों में तूफ़ान-सा क्यों है; इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यों है; दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे; पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान-सा क्यों है; तन्हाई की ये कौन-सी मंज़िल है रफ़ीक़ो; ता-हद्द-ए-नज़र एक बियाबान-सा क्यों है; हमने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की; वो ज़ूद-ए-पशेमान परेशान-सा क्यों है; क्या कोई नई बात नज़र आती है हममें; आईना हमें देख के हैरान-सा क्यों है।
Like (0)Dislike (0)
सर झुकाओगे तो... सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा; इतना मत चाहो उसे वो बे-वफ़ा हो जाएगा; हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है; जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा; मैं ख़ुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों; ज़हर भी इसमें अगर होगा दवा हो जाएगा; रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर; क्या खबर थी मुझ से वो इतना खफा हो जाएगा; सर झुकाओगे तो देवता पत्थर हो जाएगा; इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा।
Like (0)Dislike (0)
तुमने तो कह दिया कि... तुमने तो कह दिया कि मोहब्बत नहीं मिली; मुझको तो ये भी कहने की मोहलत नहीं मिली; नींदों के देस जाते कोई ख्वाब देखते; लेकिन दिया जलाने से फुरसत नहीं मिली; तुझको तो खैर शहर के लोगों का खौफ था; और मुझको अपने घर से इजाज़त नहीं मिली; फिर इख्तिलाफ-ए-राय की सूरत निकल पडी; अपनी यहाँ किसी से भी आदत नहीं मिली; बे-जार यूं हुए कि तेरे अहद में हमें; सब कुछ मिला सुकून की दौलत नहीं मिली।
Like (0)Dislike (0)
मोहब्बतों में दिखावे की... मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ना मिला; अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी ना मिला; घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे; बहुत तलाश किया कोई आदमी ना मिला; तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड आया था; फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी ना मिला; बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी; वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी ना मिला; खुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने; बस एक शख्स को मांगा मुझे वही ना मिला।
Like (0)Dislike (0)
तुझ से अब और मोहब्बत... तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती; ख़ुद को इतनी भी अज़िय्यत नहीं दी जा सकती; जानते हैं कि यक़ीं टूट रहा है दिल पर; फिर भी अब तर्क ये वहशत नहीं की जा सकती; हवस का शहर है और उस में किसी भी सूरत; साँस लेने की सहूलत नहीं दी जा सकती; रौशनी के लिए दरवाज़ा खुला रखना है; शब से अब कोई इजाज़त नहीं ली जा सकती; इश्क़ ने हिज्र का आज़ार तो दे रखा है; इस से बढ़ कर तो रिआयत नहीं दी जा सकती।
Like (0)Dislike (0)
दिल मेरा जिस से... दिल मेरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला; बुत के बन्दे तो मिले अल्लाह का बन्दा न मिला; बज़्म-ए-याराँ से फिरी बाद-ए-बहारी मायूस; एक सर भी उसे आमादा-ए-सौदा न मिला; गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आये बहुत इत्रफ़रोश; तालिब-ए-ज़मज़म-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला; वाह क्या राह दिखाई हमें मुर्शद ने; कर दिया काबे को गुम और कलीसा न मिला; सय्यद उट्ठे जो गज़ट ले के तो लाखों लाये; शैख़ क़ुरान दिखाता फिरा पैसा न मिला।
Like (0)Dislike (0)
सीने में जलन सीने में जलन आँखों में तूफ़ान-सा क्यूँ है; इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यूँ है; दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे; पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान-सा क्यूँ है; तन्हाई की ये कौन-सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो; ता-हद्द-ए-नज़र एक बियाबान-सा क्यूँ है; हमने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की; वो ज़ूद-ए-पशेमान परेशान-सा क्यूँ है; क्या कोई नई बात नज़र आती है हममें; आईना हमें देख के हैरान-सा क्यूँ है।
Like (0)Dislike (0)
आँखों में धूप दिल में हरारत... आँखों में धूप दिल में हरारत लहू की थी; आतिश जवान था तो क़यामत लहू की थी; ज़ख़्मी हुआ बदन तो वतन याद आ गया; अपनी गिरह में एक रिवायत लहू की थी; ख़ंजर चला के मुझ पे बहुत ग़म-ज़दा हुआ; भाई के हर सुलूक में शिद्दत लहू की थी; कोह-ए-गिराँ के सामने शीशे की क्या बिसात; अहद-ए-जुनूँ में सारी शरारत लहू की थी; ख़ालिद हर एक ग़म में बराबर का शरीक था; सारे जहाँ के बीच रफ़ाकत लहू की थी।
Like (0)Dislike (0)
फ़ासले ऐसे भी होंगे... फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था; सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था; वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार सू; मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था; रात भर पिछली ही आहट कान में आती रही; झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था; ख़ुद चढ़ा रखे थे तन पर अजनबीयत के गिलाफ़; वर्ना कब एक दूसरे को हमने पहचाना न था; याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी अदीम ; भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था।
Like (0)Dislike (0)
इस तरफ से गुज़रे थे काफ़िले बहारों के; आज तक सुलगते हैं ज़ख्म रहगुज़ारों के; खल्वतों के शैदाई खल्वतों में खुलते हैं; हम से पूछ कर देखो राज़ पर्दादारों के; पहले हँस के मिलते हैं फिर नज़र चुराते हैं; आश्ना-सिफ़त हैं लोग अजनबी दियारों के; तुमने सिर्फ चाहा है हमने छू के देखे हैं; पैरहन घटाओं के जिस्म बर्क-पारों के; शगले-मयपरस्ती गो जश्ने-नामुरादी है; यूँ भी कट गए कुछ दिन तेरे सोगवारों के।
Like (0)Dislike (0)
उसकी बातों पे मुझे.... उसकी बातों पे मुझे आज यकीं कुछ कम है; ये अलग है कि वो चर्चे में नहीं कुछ कम है; जब से दो चार नए पंख लगे हैं; उगने; तब से कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है; मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही; जो ज्यादा है जहां वो ही वहीं कुछ कम है; मुल्क तो दूर की बात अपने ही घर में देखो; कहीं कुछ चीज ज्यादा है कहीं कुछ कम है; देख कर जलवा ए रुख आज वही दंग हुए; जो थे कहते तेरा महबूब हसीं कुछ कम है।
Like (0)Dislike (0)
प्यास वो दिल की... प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं; कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं; बेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी; एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं; रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने; आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं; सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने; वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं; तुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शख़्स; उस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं।
Like (0)Dislike (0)
प्यास वो दिल की... प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं; कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं; बेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी; एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं; रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने; आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं; सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने; वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं; तुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शख़्स; उस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं।
Like (0)Dislike (0)