सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर... सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं; हाय क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं; है मेरी ज़िल्लत ही कुछ मेरी शराफ़त की दलील; जिस की ग़फ़लत को मलक रोते हैं वो ग़ाफ़िल हूँ मैं; बज़्म-ए-हस्ती अपनी आराइश पे तू नाज़ाँ न हो; तू तो इक तस्वीर है महफ़िल की और महफ़िल हूँ मैं; ढूँढता फिरता हूँ ऐ इक़बाल अपने आप को; आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं।

कुछ हिज्र के मौसम... कुछ हिज्र के मौसम ने सताया नहीं इतना; कुछ हम ने तेरा सोग मनाया नहीं इतना; कुछ तेरी जुदाई की अज़िय्यत भी कड़ी थी; कुछ दिल ने भी ग़म तेरा मनाया नहीं इतना; क्यों सब की तरह भीग गई हैं तेरी पलकें; हम ने तो तुझे हाल सुनाया नहीं इतना; कुछ रोज़ से दिल ने तेरी राहें नहीं देखीं; क्या बात है तू याद भी आया नहीं इतना; क्या जानिए इस बे-सर-ओ-सामानी-ए-दिल ने; पहले तो कभी हम को रुलाया नहीं इतना।

ये क्या के सब... ये क्या के सब से बयाँ दिल की हालतें करनी; ​ फ़राज़​ ​ तुझको न ​​आई मुहब्बतें करनी; ये क़ुर्ब क्या है के ​तु​ सामने है और हमें; शुमार अभी से जुदाई की स अतें करनी; कोई ख़ुदा होके पत्थर जिसे भी हम चाहें; तमाम उम्र उसी की इबादतें करनी; सब अपने अप​ने क़रीने से मुंतज़िर उसके; किसी को शुक्र किसी को शिकायतें करनी; हम अपने दिल से हैं मजबूर और लोगों को; ज़रा सी बात पे बरपा क़यामतें करनी।

वही गर्दिशें वही... वही गर्दिशें वही पेच-ओ-ख़म तेरे बाद भी; वही हौसले मेरे दम बा दम तेरे बाद भी; तेरे साथ थी तेरी जफ़ा मुझे मो अतबार ; तेरे सारे ग़म मुझे मोहतरम तेरे बाद भी; मेरे साथ ही मेरी हर ख़ुशी तेरी मुन्तज़िर; तेरी मुन्तज़िर मेरी चश्म-ए-नम तेरे बाद भी; तू किसी के क़लब-ओ-आरज़ू में ढल गया; मैं ना हो सका कभी खुद में जम्म तेरे बाद भी; मेरे बाद कितने ही रूप तूने बदल लिए; मैं वहीँ हूँ अब तेरी कसम तेरे बाद भी।

​ज़िन्दगी से यही​...​​​​​​​ ज़िन्दगी से यही ग़िला है मुझे​;​ तू बहुत देर से मिला है मुझे​;​​​​​​​​​ हमसफ़र चाहिए हुजूम नहीं​;​​ मुसाफ़िर ही काफ़िला है मुझे​;​​​​​​​ दिल धड़कता नहीं सुलगता है​;​​​​ वो जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे​;​​​​​​​ लबकुशा हूँ तो इस यक़ीन के साथ​;​​​​ क़त्ल होने का हौसला है मुझे​;​​​​​​​ कौन जाने कि चाहतों में फ़राज़ ​;​​​​ क्या गँवाया है क्या मिला है मुझे।

यहाँ किसी को भी... यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला; किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला; ग़ज़ाल-ए-अश्क सर-ए-सुब्ह दूब-ए-मिज़गाँ पर; कब आँख अपनी खुली और लहू लहू न मिला; चमकते चाँद भी थे शहर-ए-शब के ऐवाँ में; निगार-ए-ग़म सा मगर कोई शम्मा-रू न मिला; उन्ही की रम्ज़ चली है गली गली में यहाँ; जिन्हें उधर से कभी इज़्न-ए-गुफ़्तुगू न मिला; फिर आज मय-कदा-ए-दिल से लौट आए हैं; फिर आज हम को ठिकाने का हम-सबू न मिला।

सिलसिले तोड़ गया... ​​सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते-जाते; वरना इतने तो मरासिम थे कि आते-जाते; शिकवा-ए-जुल्मते-शब से तो कहीं बेहतर था; अपने हिस्से की कोई श मा जलाते जाते; कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जाना; फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते-जाते; ​​ जश्न-ए-मक़्तल ही न बरपा हुआ वरना हम भी; पा बजोलां ही सहीं नाचते-गाते जाते; उसकी वो जाने उसे पास-ए-वफ़ा था कि न था; तुम फ़राज़ अपनी तरफ से तो निभाते जाते।

दिल मेरा जिस से बहलता... दिल मेरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला; बुत के बने तो मिले अल्लाह का बंदा ना मिला; बज़्म-ए-याराँ से फिरी बाद-ए-बहारी मायूस; एक सर भी उसे आमादा-ए-सौदा न मिला; गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आये बहुत इत्रफ़रोश; तालिब-ए-ज़मज़म-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला; वाह क्या राह दिखाई हमें मुर्शद ने; कर दिया काबे को गुम और कलीसा न मिला; सय्यद उट्ठे जो गज़ट ले के तो लाखों लाये; शैख़ क़ुरान दिखाता फिरा पैसा न मिला।

जर्जर हौसला... जर्जर हौसला मरम्मत मांगता है; मुश्किल वक्त हिम्मत मांगता है; उम्र भर नेकी न की गयी मगर; अब बुढ़ापे में जन्नत मांगता है; मुश्किल वक्त... वफ़ा के सौदे में वो सितमगर मुझसे; शर्त में बेशर्त मोहब्बत मांगता है; मुश्किल वक्त... काफ़िर बेटों का वो खुदा-परस्त बाप; औलादों के लिए मन्नत मांगता है; मुश्किल वक्त... एक रुपया नहीं निकलता उनकी जेब से; जिनके लिए माँ का दिल बरकत मांगता है; मुश्किल वक्त...

​ये आलम शौक़... ये आलम शौक़ का देखा न जाये; वो बुत है या ख़ुदा देखा न जाये; ये किन नज़रों से तुम ने आज देखा; के तेरा देखना ​देखा ​ना जाये; हमेशा के लिये मुझ से बिछड़ जा; ये मन्ज़र बारहा देखा न जाये; ग़लत है जो सुना पर आज़मा कर; तुझे ऐ बावफ़ा देखा न जाये; ये महरूमी नहीं पास-ए-वफ़ा है; कोई तेरे सिवा देखा न जाये; यही तो आश्ना बनते हैं आख़िर; कोई नाआश्ना देखा न जाये; फ़राज़ अपने सिवा है कौन तेरा; तुझे तुझ से जुदा देखा न जाये।

बात करनी मुझे... बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी; जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी; ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार; बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी; उन की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू; के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी; चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन; जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी; क्या सबब तू जो बिगड़ता है ज़फ़र से हर बार; ख़ू तेरी हूर-ए-शमाइल कभी ऐसी तो न थी।

इतना तो ज़िंदगी में... इतना तो ज़िंदगी में किसी की ख़लल पड़े; हँसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े; जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़म; यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े; एक तुम के तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है; एक हम के चल पड़े तो बहरहाल चल पड़े; मुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह; जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े; साक़ी सभी को है ग़म-ए-तश्नालबी मगर; मय है उसी के नाम पे जिस के उबल पड़े।

तेरा चेहरा सुब्ह का तारा लगता है; सुब्ह का तारा कितना प्यारा लगता है; तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है; तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है; रात हमारे साथ तू जागा करता है; चाँद बता तू कौन हमारा लगता है; किस को खबर ये कितनी कयामत ढाता है; ये लड़का जो इतना बेचारा लगता है; तितली चमन में फूल से लिपटी रहती है; फिर भी चमन में फूल कँवारा लगता है; कैफ वो कल का कैफ कहाँ है आज मियाँ; ये तो कोई वक्त का मारा लगता है।

वो जो वह एक अक्स है सहमा हुआ डरा हुआ; देखा है उसने गौर से सूरज को डूबता हुआ; तकता हु कितनी देर से दरिया को मैं करीब से; रिश्ता हरेक ख़त्म क्या पानी से प्यास का हुआ; होठो से आगे का सफर बेहतर है मुल्तवी करे; वो भी है कुछ निढाल सा मैं भी हु कुछ थका हुआ; कल एक बरहना शाख से पागल हवा लिपट गयी; देखा था खुद ये सानिहा लगता है जो सुना हुआ; पैरो के निचे से मेरे कब की जमीं निकल गयी; जीना है और या नहीं अब तक न फैसला हुआ।

मेरे क़ाबू में न... मेरे क़ाबू में न पेहरों दिल-ए-नाशाद आया; वो मेरा भूलने वाला जो मुझे याद आया; दिल-ए-वीराँ से रक़ीबों ने मुरादें पाईं; काम किस किस के मेरा ख़िर्मन-ए-बर्बाद आया; लीजिये सुनिये अब अफ़साना-ए-फ़ुर्क़त मुझ से; आप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया; दी मु अज़्ज़िन ने अज़ाँ वस्ल की शब पिछले पहर; हाये कमबख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया; बज़्म में उन के सभी कुछ है मगर दाग़ नहीं; मुझ को वो ख़ाना-ख़राब आज बहुत याद आया।