उलझाव का मज़ा भी... उलझाव का मज़ा भी तेरी बात ही में था; तेरा जवाब तेरे सवालात ही में था; साया किसी यक़ीं का भी जिस पर न पड़ सका; वो घर भी शहर-ए-दिल के मुज़ाफ़ात ही में था; इलज़ाम क्या है ये भी न जाना तमाम उम्र; मुल्ज़िम तमाम उम्र हवालात ही में था; अब तो फ़क़त बदन की मुरव्वत है दरमियाँ; था रब्त जान-ओ-दिल का तो शुरूआत ही में था; मुझ को तो क़त्ल करके मनाता रहा है जश्न; वो ज़िलिहाज़ शख़्स मेरी ज़ात ही में था।
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नसीब आज़माने के दिन... नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं; क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं; जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है; सब उनको सुनाने के दिन आ रहे हैं; अभी से दिल-ओ-जाँ सर-ए-राह रख दो; कि लुटने-लुटाने के दिन आ रहे हैं; टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती; निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं; सबा फिर हमें पूछती फिर रही है; चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं; चलो फ़ैज़ फिर से कहीं दिल लगायें; सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं।
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कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो... कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो; बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी देर साथ चलो; तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है; ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो; नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं; बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो; ये एक शब की मुलाक़ात भी गनीमत है; किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो; तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जाना हमें भी करना है; फ़राज़ तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो।
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ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा था; दिल का आलम भी बे-मिसाल सा था; अक्स मेरा भी आइनों में नहीं; वो भी कैफ़ियत-ए-ख़याल सा था; दश्त में सामने था ख़ेमा-ए-गुल; दूरियों में अजब कमाल सा था; बे-सबब तो नहीं था आँखों में; एक मौसम के ला-ज़वाल सा था; ख़ौफ़ अँधेरों का डर उजालों से; सानेहा था तो हस्ब-ए-हाल सा था; क्या क़यामत है हुज्ला-ए-जाँ में; उस के होते हुए मलाल सा था; जिस की जानिब अदा नज़र न उठी; हाल उस का भी मेरे हाल सा था।
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निकले हम कहाँ से निकले हम कहाँ से और किधर निकले; हर मोड़ पे चौंकाए ऐसा अपना सफ़र निकले; तु समझाया किया रो-रो के अपनी बात; तेरे हमदर्द भी लेकिन बड़े बे-असर निकले; बरसों करते रहे उनके पैगाम का इंतजार; जब आया वो तो उनके बेवफा होने की खबर निकले; अब संभले के चले ज़हर और सफ़र की सोच; ऐसा ना हो कि फिर से ये जगह उसी का शहर निकले; तु भी रखता इरादे ऊँचे तेरा भी कोई मक़ाम होता; पर तेरी किस्मत की हमेशा हर बात पे मगर निकले।
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ऐसे चुप है... ऐसे चुप है कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे; तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे; अपने ही साये से हर गाम लरज़ जाता हूँ; रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे; कितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे; याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे; मंज़िलें दूर भी हैं मंज़िलें नज़दीक भी हैं; अपने ही पाँवों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे; आज दिल खोल के रोए हैं तो यों खुश हैं फ़राज़ ; चंद लमहों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे।
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खुलता नहीं है हाल... खुलता नहीं है हाल किसी पर कहे बग़ैर; पर दिल की जान लेते हैं दिलबर कहे बग़ैर; मैं कैसे कहूँ तुम आओ कि दिल की कशिश से वो; आयेँगे दौड़े आप मेरे घर कहे बग़ैर; क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें; लब को तुम्हारे लब से मिलाकर कहे बग़ैर; बेदर्द तू सुने ना सुने लेक दर्द-ए-दिल; रहता नहीं है आशिक़-ए-मुज़तर कहे बग़ैर; तकदीर के सिवा नहीं मिलता कहीं से भी; दिलवाता ऐ ज़फ़र है मुक़द्दर कहे बग़ैर।
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आज भड़की रग-ए-वहशत... आज भड़की रग-ए-वहशत तेरे दीवानों की; क़िस्मतें जागने वाली हैं बयाबानों की; फिर घटाओं में है नक़्क़ारा-ए-वहशत की सदा; टोलियाँ बंध के चलीं दश्त को दीवानों की; आज क्या सूझ रही है तेरे दीवानों को; धज्जियाँ ढूँढते फिरते हैं गरेबानों की; रूह-ए-मजनूँ अभी बेताब है सहराओं में; ख़ाक बे-वजह नहीं उड़ती बयाबानों की; उस ने एहसान कुछ इस नाज़ से मुड़ कर देखा; दिल में तस्वीर उतर आई परी-ख़ानों की।
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पुकारती है ख़ामोशी... पुकारती है ख़ामोशी मेरी फुगाँ की तरह; निग़ाहें कहती हैं सब राज़-ए-दिल ज़ुबाँ की तरह; जला के दाग़-ए-मोहब्बत ने दिल को ख़ाक किया; बहार आई मेरे बाग़ में खिज़ाँ की तरह; तलाश-ए-यार में छोड़ी न सरज़मीं कोई; हमारे पाँवों में चक्कर है आसमाँ की तरह; छुड़ा दे कैद से ऐ कैद हम असीरों को; लगा दे आग चमन में भी आशियाँ की तरह; हम अपने ज़ोफ़ के सदके बिठा दिया ऐसा; हिले ना दर से तेरे संग-ए-आसताँ की तरह।
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आज भड़की रग-ए-वहशत... आज भड़की रग-ए-वहशत तेरे दीवानों की; क़िस्मतें जागने वाली हैं बयाबानों की; फिर घटाओं में है नक़्क़ारा-ए-वहशत की सदा; टोलियाँ बंध के चलीं दश्त को दीवानों की; आज क्या सूझ रही है तेरे दीवानों को; धज्जियाँ ढूँढते फिरते हैं गरेबानों की; रूह-ए-मजनूँ अभी बेताब है सहराओं में; ख़ाक बे-वजह नहीं उड़ती बयाबानों की; उस ने एहसान कुछ इस नाज़ से मुड़ कर देखा; दिल में तस्वीर उतर आई परी-ख़ानों की।
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मेरा जी है जब तक... मेरा जी है जब तक तेरी जुस्तजू है; ज़बाँ जब तलक है यही गुफ़्तगू है; ख़ुदा जाने क्या होगा अंजाम इसका; मै बेसब्र इतना हूँ वो तुन्द ख़ू है; तमन्ना है तेरी अगर है तमन्ना; तेरी आरज़ू है अगर आरज़ू है; किया सैर सब हमने गुलज़ार-ए-दुनिया; गुल-ए-दोस्ती में अजब रंग-ओ-बू है; ग़नीमत है ये दीद वा दीद-ए-याराँ; जहाँ मूँद गयी आँख मैं है न तू है; नज़र मेरे दिल की पड़ी दर्द किस पर; जिधर देखता हूँ वही रू-ब-रू है।
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सबसे छुपा कर... सबसे छुपा कर दर्द जो वो मुस्कुरा दिया; उस की हंसी ने तो आज मुझे रुला दिया; लहज़े से उठ रहा था हर एक दर्द का धुआँ; चेहरा बता रहा है कि कुछ गँवा दिया; आवाज़ में ठहराव था आँखों में नमी थी; और कह रहा था कि मैंने सब कुछ भुला दिया; जाने क्या उस को लोगों से थी शिकायतें; तन्हाईयो के देश में खुद को बसा दिया; खुद भी वो हम से बिछड़ कर अधूरा सा हो गया; मुझ को भी इतने लोगों में तन्हा बना दिया।
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तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है; तुझे अलग से जो सोचू अजीब लगता है; जिसे ना हुस्न से मतलब ना इश्क़ से सरोकार; वो शख्स मुझ को बहुत बदनसीब लगता है; हदूद-ए-जात से बाहर निकल के देख ज़रा; ना कोई गैर ना कोई रक़ीब लगता है; ये दोस्ती ये मरासिम ये चाहते ये खुलूस; कभी कभी ये सब कुछ अजीब लगता है; उफक़ पे दूर चमकता हुआ कोई तारा; मुझे चिराग-ए-दयार-ए-हबीब लगता है; ना जाने कब कोई तूफान आयेगा यारो; बलंद मौज से साहिल क़रीब लगता है।
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मुझ पे तूफ़ाँ... मुझ पे तूफ़ाँ उठाये लोगों ने; मुफ़्त बैठे बिठाये लोगों ने; कर दिए अपने आने-जाने के; तज़किरे जाये-जाये लोगों ने; वस्ल की बात कब बन आयी थी; दिल से दफ़्तर बनाये लोगों ने; बात अपनी वहाँ न जमने दी; अपने नक़्शे जमाये लोगों ने; सुनके उड़ती-सी अपनी चाहत की; दोनों के होश उड़ाये लोगों ने; क्या तमाशा है जो न देखे थे; वो तमाशे दिखाये लोगों ने; कर दिया मोमिन उस सनम को ख़फ़ा; क्या किया हाये- हाये लोगों ने।
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उँगलियाँ यूँ न सब पर... उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो; खर्च करने से पहले कमाया करो; ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे; बारिशों में पतंगें उड़ाया करो; दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर; नीम की पत्तियों को चबाया करो; शाम के बाद जब तुम सहर देख लो; कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो; अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बाँधकर; आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो; चाँद सूरज कहाँ अपनी मंज़िल कहाँ; ऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो।
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