झुठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते हैं
तरक्की के बाज़ की उडान में कभी आवाज़ नहीं होती
झुठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते हैं
तरक्की के बाज़ की उडान में कभी आवाज़ नहीं होती
सस्ता सा छोटा सा घरौंदा पसंद है मुझे तेरी बाँहों का
इनमे मुझे दोनों जहां का सुकून मिलता है
कितने स्वीट हो तुम मेरी सारे बातें मानते हो
रात को ख़्वाबों में आए थे और मुस्कुराकर चले गए
तुमसे किसने कह दिया कि मुहब्बत की बाजी हार गए हम?
अभी तो दाँव मे चलने के लिए मेरी जान बाकी है !
गर लफ्ज़ों में कर सकते बयान इंतेहा-ए-दर्द ए दिल
लाख तेरा दिल पत्थर का सही
कब का मोम कर देते
मेरी शायरी कितनी ही अच्छी क्यों ना हो दोस्तों
लिखने का आनंद तो आपके तारीफ़ के बाद ही आता है
वक़्त और दोस्त मिलते तो मुफ्त हैं
लेकिन उनकी कीमत का अंदाज़ा तब होता हैजब ये कहीं खो जाते हैं
बचपन में जब चाहा हँस लेते थे जहाँ चाहा रो सकते थे
अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए अश्कों को तनहाई
मोहब्बत छोड के हर एक जुर्म कर लेना
वरना तुम भी मुसाफिर बन जाओगे हमारी तरह इन तन्हा रातों के
कुर्बान हो गया मैं उस सख्श की हाथों की लकीरों पर
जिसने तुझे माँगा भी नहीं और तुझे पा भी लिया
ज़िन्दगी हमें बहुत खूबसूरत दोस्त देती है
लेकिन अच्छे दोस्त हमें खूबसूरत ज़िन्दगी देते हैं
मैं कभी बुरा नहीं था उसने मुझे बुरा कह दिया
फिर मैं बुरा बन गया ताकि उन्हें कोई जुठा न कह सके
मैं पल दो पल का शायर हूँ पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मेरी जवानी है
G.R..s
सुना है प्यार मे कोई रूठे तो उसको शायरी से मनाते है
ना हम कभी रूठे है ना हमको किसी ने मनाया है
वो खुद पर गरूर करते है तो इसमें हैरत की
कोई बात नहीं जिन्हें हम चाहते है वो आम हो ही नहीं सकते