सिलसिला वफाओं का एक नया चलाया मैंने
न उसको याद रखा न ही भुलाया मैंने

बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं
अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती

अक्सर पूछते है लोग किसके लिए लिखते हो
अक्सर कहता है दिल काश कोई होता

बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं
अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती

राज ज़ाहिर ना होने दो तो एक बात कहूँ
मैं धीरे धीरे तेरे बिन मर जाऊँगा

पार्लर जाके रंग तो गोरा कर लोगी पर क्या करोगी
तुम अपने इस काले दिल का

देख कर उसको तेरा यूँ पलट जाना
नफरत बता रही है तूने मोहब्बत गज़ब की थी

शायरी से भरे पन्नों को छूकर देखा है कभी...
कोई दिल वहाँ भी धड़का करता है.. .

डूबी हैं उगंलिया अपने ही लहू मे
ये कांच के टुकड़ों पर भरोसे की सजा है

जो आँखें मुझे देख कर झुक गयीं
यकीनन उसने कभी मुझे चाहा तो ज़रूर होगा.

आरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने की
लम्हें तो अपने आप ही मिल जाते हैं

ये बात कैसे गंवारा करेगा दिल मेरा
कि तेरा नाम किसी गैर की जुबान पे हो

चाहे कुछ भी हो सवालात ना करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात ना करना उनसे

मैं जख्म जख्म हूँ जाकर मिलू कीससे ? नमक से तर कपडे यहाँ सब पहेने हुए हैं..

हुस्न वाले जब तोड़ते हैं दिल किसी का, बड़ी सादगी से कहते है मजबूर थे हम..!