​फिर कहीं से दर्द के सिक्के मिलेंगे​:​ ये हथेली आज फिर खुजला रही है​।

जब वक़्त करवट लेता हैं ना दोस्तों
तो बाजियाँ नहीं जिंदगियाँ पलट जाती है

हवा से कह दो कि खुद को आजमा के दिखाये बहुत
चिराग बुझाती है एक जला के दिखाये

खुद को बुरा कहने की हिम्मत नही
इसलिए अक्सर लोग कहते हैं की जमाना‬ ख़राब है

सच बोलने में या सुनने में कोई दिक्कत नहीं है
बस हज़म करने में दिक्कत होती है

तुम वादा करो आखरी दीदार करने आओगे,
हम मौत को भी इंतज़ार करवायेगे तेरी खातिर..

सुकून मिलता है दो लफ़्ज़ों को कागज पर उतार कर
चीख भी लेते हे और आवाज भी नही आती

सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर

समय अच्छा हो तो आपकी गलती भी मजाक लगती है
और समय खराब हो तो मजाक भी गलती बन जाती है

हमारा ज़िक्र छोड़ो हम ऐसे लोग हैं कि जिन्हे; नफ़रत कुछ नहीं करती मोहब्बत मार देती है।

ठोकरें खाकर भी ना संभले तो मुसाफिर का नसीब
राह के पत्थर तो अपना फ़र्ज़ अदा करते हैं

कुछ कर गुजरने की चाह में, कहाँ कहाँ से गुजरे
अकेले ही नज़र आये हम, जहां जहां से गुजरे…

मैं झुक गया तो वो सज़दा समझ बैठे
मैं तो इन्सानियत निभा रहा था वो खुद को ख़ुदा समझ बैठे

तुम पत्थर भी मारोगे तो भर लेंगे झोली अपनी
क्योंकि हम यारों के तोहफ़े ठुकराया नहीं करते

तौहीन न करना कभी शराब को कड़वा कह कर..
किसी ग़म के मारे से पूछिएगा, इसमें मिठास कितनी
है....!!