वो जान गयी थी हमें दर्द में मुस्कराने की आदत हैं,
वो रोज नया जख्म देती थी मेरी ख़ुशी के लिए…
वो जान गयी थी हमें दर्द में मुस्कराने की आदत हैं,
वो रोज नया जख्म देती थी मेरी ख़ुशी के लिए…
कितने स्वीट हो तुम मेरी सारे बातें मानते हो
रात को ख़्वाबों में आए थे और मुस्कुराकर चले गए
वो खुद पर गरूर करते है तो इसमें हैरत की
कोई बात नहीं जिन्हें हम चाहते है वो आम हो ही नहीं सकते
न लफ़्ज़ों का लहू निकलता है न किताबें बोल पाती हैं
मेरे दर्द के थे दो गवाह दोनों बे-जुबान निकले
तुम्हे उल्फ़त नही मुझसे मुझे फुर्सत नही तुम से
अजीब शिकवा सा रहता है तुम्हे मुझसे मुझे तुम से
"इस दुनियाँ के हर शख्स को नफरत है "झूठ" से...
मैं परेशान हूँ ये सोचकर, कि फिर ये "झूठ" बोलता कौन है"
शायरी वो नही लिखते हैं जो शराब से नशा करते हैं..♡
शायरी तो वो लिखते हैं जो यादों से नशा करते हैं..♡♡♡
उसने तो कर ही लिए किनारे कामिल से कुछ इस कदर
तदबीरें सकून की सीखनी पढ़ें किन्ही गैरों से ख़ुदा न करे
हम तो निकले थे तलाशे इश्क में अपनी तनहाईयों से लड़ कर
मगर गर्मी बहुत थी गन्ने का रस पी के वापिस आ गए
💕💕 रुखसत हुए तेरी गली से हम आज कुछ इस कदर..
लोगो के मुह पे राम नाम था..
और मेरे दिल में बस तेरा नाम था..💕💕
मैं लिखता हुं सिर्फ दिल बहलाने के लिए वर्न
जिस पर प्यार का असर नही हुआ उस पर अल्फाजो का क्या असर होगा
मुझ से रह रह कर कहती हैं हांथों की लकीरें मेरी
वो तो मेरा तब भी नहीं था जब उसका हांथ मेरे हांथों में था
मेरे पापो की सजा कुछ इस कदर बढ़ गयीं है कि
मैं कभी तनहा नहीं रहता अब लोगो कि बद्दुआयें हमेशा साथ रहती है
सफल लोग दूसरों की मदद के लिए हमेशा अवसर तलाशते रहता है
और वही असफल लोग कहते है इससे भला मेरा क्या फायदा
रोये वो इस कदर उनकी लाश से लिपट कर कि लाश खुद उठकर बोली
ले तू मरजा पहले ऊपर ही चढ़े जा रही है इतनी गर्मी मैं