तलब करे तो मैं अपनी आँखें भी उन्हें देदू
मगर ये लोग मेरी आँखों के ख्वाब मांगते है

क्यूँ शर्मिंदा करते हो रोज हाल हमारा पूँछ कर
हाल हमारा वही है जो तुमने बना रखा है

ना मजहब, ना शोहरत, और ना ही रंगो का फर्क था
ए मौत तेरे डर से आज सभी चेहरे एक से नजर आएं

मशरूफ थे सब अपनी ज़िंदगी की उलझनो में
ज़रा सी ज़मीन क्या हिली सबको खुदा याद आ गया

जीत गया तू मैं आखिर हार गई
कई रुख धारें मोडीं ह्रदय में प्रेम की नदिया आखिर सूख गई

उस शक्श से फ़क़त इतना सा ताल्लुक हैं मेरा !!
वो परेशान होता है तो मुझे नींद नही आती है !!

रातों को आवारगी की आदत तो हम दोनों में थी
अफ़सोस चाँद को ग्रहण और मुझे इश्क हो गया

अब कहा जरुरत है हाथों मे पत्थर उठाने की
तोडने वाले तो जुबान से ही दिल तोड देते हैं

दिखाने के लिए तो हम भी बना सकते हैं ताजमहल
मगर मुमताज को मरने दे हम वो शाहजहाँ नही

जरा देखो तो ये दरवाजे पर दस्तक किसने दी है
अगर इश्क हो तो कहना अब दिल यहाँ नही रहता

ऐ इश्क़ दिल की बात कहूँ तो बुरा तो नहीं मानोगे
बड़ी राहत के दिन थे तेरी पहचान से पहले

मेरी हँसी में भी कई ग़म छुपे हैं डरता हूँ
बताने से कहीं सबका प्यार से भरोसा न उठ जाए

ऐ इश्क़ दिल की बात कहूँ तो बुरा तो नहीं मानोगे
बड़ी राहत के दिन थे तेरी पहचान से पहले

दोस्तों कमाई छोटी या बड़ी हो सकती है
पर रोटी की साईज लगभग सब घर मे एक जैसी ही होती है

इतिहास में जाके सुन लेना हमारी कहानी
खून बहाया इतना नही था जितना नदियों में पानी