बचपन में भरी दुपहरी नाप आते थे पूरा गाँव
जब से डिग्रियाँ समझ में आई, पाँव जलने लगे

तुम्हारी नफरत पर भी लुटा दी ज़िंदगी हमने,
सोचो अगर तुम मोहब्बत करते तो हम क्या करते

तू मिले या ना मिले ये मेरे मुकद्दर कि बात है मगर
सुकून बहुत मिलता है तूझे अपना सोच कर

मुझमे खामीया बहुत सी होगी मगर
एक खूबी भी है
मे कीसी से रीश्ता मतलब के लीये नही रखता

सूरत नहीं देखी तेरी अरसे से
बस वो आखिरी बार का मुस्कुरा के मिलना आज भी जीने की वजह है मेरी

मैंने कहा मुझे छोड़ दो या तोड़ दो; वो बेवफ़ा हँस के बोली इतने नायाब तोहफ़े रोज़-रोज़ नहीं मिला करते।

मत पूछो कितनी मोहब्बत है मुझे उनसे
बारिश की बूँद भी अगर उन्हें छू ले तो दिल में आग लग जाती है

खुदा ने लिखा ही नहीं तुझको मेरी क़िस्मत में शायद,
वरना खोया तो बहुत कुछ था एक तुझे पाने के लिए

वो मिली थी रास्ते पर पूछ रही थी 
कहाँ रहते हो आज-कल......
हमने भी मुस्कुरा के कह दिया “नशे” में…! Er kasz

जीने का तरीका काश वो फूटपाथ पे खेल रहा बच्चा मुझे सिखा दे
ना जाने भूखा पेट लेकर कैसे मुस्कुरा लेता हैं

दुश्मन भी हमारी हालत देख कर हँस
उठे....!
कहने लगे.. जिसका हम कुछ नही कर सके.....
उसका ‪‎मोहब्बत‬ ने क्या हाल कर दिया....!!

चाँद निकलेगा तो दुआ मांगेंगे; अपने हिस्से में मुकदर का लिखा मांगेंगे; हम तलबगार नहीं दुनिया और दौलत के; हम रब से सिर्फ आपकी वफ़ा मांगेंगे!

दो दिलो की मोहब्बत से जलते हैं लोग;
तरह-तरह की बातें तो करते हैं लोग;
जब चाँद और सूरज का होता है खुलकर मिलन;
तो उसे भी "सूर्य ग्रहण" तक कहते हैं लोग!

झूठे दिलासे से स्पष्ट इंकार
अधिक बेहतर है

अब गिला क्या करना उनकी बेरुखी का
दिल ही तो था भर गया होगा
G.R..s