समझा दो तुम अपनी यादों को ज़रा; दिन रात तंग करती हैं मुझे कर्ज़दार की तरह।

नज़र-नज़र का फर्क है, हुस्न का नहीं ;
महबूब जिसका भी हो बेमिसाल होता है !!

अब सोचते हैं लाएँगे तुझ सा कहाँ से हम; उठने को उठ तो आए तेरे आस्ताँ से हम।

आज मुस्कुराने की हिम्मत नहीं मुझ में..
आज टूट कर मुझे तेरी याद आ रही है..!!

अब सोचते हैं लाएँगे तुझ सा कहाँ से हम; उठने को उठ तो आए तेरे आस्ताँ से हम।

किस जगह रख दूँ मैं तेरी याद के चराग़ को कि रौशन भी रहूँ और हथेली भी ना जले।

परछाइयों के शहर की तन्हाईयाँ ना पूछ
अपना शरीक-ए-ग़म कोई अपने सिवा ना था

तुम्हे कया पता किस दर्द में हुँ में
जो कभी लिया नही उस कर्ज में हुँ में

लोग तो लिखते रहे मेरी पर ग़ज़ल
तुमने इतना भी ना पूछा, तुम उदास क्यों हो

लिखदे मेरा अगला जनम उसके नाम पे ए खुदा
ईस जनम में ईश्क थोडा कम पड गया है

हम तो अब भी खडे है तेरे इनतजार मे,
उसी राह मे बेसबब बेइनतहा मोहब्बत लिए..

लाजिमी नहीं की आपको आँखों से ही देखुं
आपको सोचना आपके दीदार से कम नहीं

दिल्लगी कर जिंदगी से दिल लगा के चल
जिंदगी है थोड़ी थोडा मुस्कुरा के चल

एक बार फिर से निकलेगे तलाश ऐ इशक मे दुआ
करो यारो इस बार कोई बेवफा ना मिले

अपनी कहे अपनी सुने अपने लिए जिए मरे ,
.
ऐसे सनम से दिल लगाना छोड़ दिया है !