तुम्हारी याद में इस कदर रोते हैं; तुम्हारी याद में इस कदर रोते हैं; कि पड़ोसी हमारे आंसुओं से बर्तन धोते हैं।

होंठो से जो छू लिया एहसास अब तक है; आँखें नम हैं और सांसों में आग अब तक है। और क्यों न हो खाई भी तो हरी मिर्ची थी!

सागर से गहरा कोई नहीं; पूजा पाठ से फलदायक कोई नहीं; अब आपकी क्या तारीफ़ करूँ; दोस्ती में आप जैसा नालायक कोई नहीं!

हर लड़की तेरे लिए बेकरार है; हर लड़की को तेरा इंतज़ार है; ये तेरा कोई कमाल नहीं; . . . . . . . बस दो दिन बाद राखी का त्यौहार है।

1947 का बहुत ही मशहूर मैसेज (SMS): . . . . . . . . . . तब मोबाइल था क्या जो SMS होगा? आप लोग भी न SMS देखा नहीं कि मोबाइल में अंगूठा मारना शुरू।

ज़िंदगी में एक बात हमेशा याद रखना कि क्रीम बिस्कुट में क्रीम होती है लेकिन टाइगर बिस्कुट में टाइगर नहीं होता!

हवायें कहती है दोस्ती कर; फिजायें कहती हैं मस्ती कर; बहारें कहती हैं शादी कर; पर; घर वाले कहते हैं बकवास बंद कर।

उसके क़दम जहाँ-जहाँ पड़े हमने वो जगह चूम ली और वो बेवफ़ा मेरी मम्मी को जा के बोली .. ... .... आंटी आपका बंटी मिट्टी खाता है।

जब से तुम्हें देखा है मेरा रात को दिन को सुबह को शाम को खेलते वक़्त सोते वक़्त जागते वक़्त . . . . हँस-हँस के बुरा हाल है।

साला स्मार्ट होने का बडा़ प्रॉब्लेम है। लड़कियाँ देखते ही ये सोचती हैं... . . . . . . . . इसकी तो पहले से 4-5 गर्लफ्रेंड होंगी।

तेरी खामोशी और उदासी को हम समझ ना सके दोस्त... . . . . . . . वो तो शाम को तेरी मम्मी ने बताया कि आज तेरी चप्पल से पिटाई हुई है।

तुम्हारी एक चीज़ सब को बहुत पसंद है कि तुम हर काम दिल लगा कर करते हो क्योंकि.... . . . . . . . दिमाग तो तुम्हारे पास है ही नहीं।

नज़र से नज़र मिला कर तो देखो; किसी को अपना बना कर तो देखो; मिलना चाहेंगे सब लोग आप से; . . . . . . . दिन में एक बार नहा कर तो देखो।

ख़ुशी को गम कैसे कह दें; आपकी दोस्ती को कम कैसे कह दें; ये तो सब कहते हैं आप पागल हो; लेकिन सच में हो हम ये कैसे कह दें।

अर्ज़ है: इतने खुद्दार थे हम कि कभी स्कूल ना जाते थे ग़ालिब; वो तो लड़कियों के शौक-ए-दीदार ने हमें बैचलर बना दिया।