न हाथ थाम सके न पकड़ सके दामन;बहुत ही क़रीब से गुज़र कर बिछड़ गया कोई।

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ।

हमने गुज़रे हुए लम्हों का हवाला जो दिया
हँस के वो कहने लगे रात गई बात गई

ये फ़ासले तेरी गलियों के हमसे तय ना हुए; हज़ार बार रुके हम हज़ार बार चले।

हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यों है; अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें।

काश नासमझी में ही बीत जाती ज़िन्दगी
समझदारी ने तो बहुत कुछ छीन लिया हमसे।

मैं समझता था कि लौट आते हैं जाने वाले तूने जा कर तो जुदाई मेरी क़िस्मत कर दी।

मंजिल ढूंढ़ते ढूंढ़ते आज मुझे एहसास हुआ; कि मेरे हमसफ़र की राह तो कबकी बदल गयी!

रुठुंगा अगर तुजसे तो इस कदर रुठुंगा की
ये तेरीे आँखे मेरी एक झलक को तरसेंगी

हर रोज़ हमें मिलना हर रोज़ हमें बिछड़ना है; मैं रात की परछाई और तू सुबह का चेहरा है।

मुहब्बत नहीं है नाम सिर्फ पा लेने का
बिछड़ के बाद भी अक्सर दिल धड़कते हैं साथ-साथ

तकदीर के काजी से मैं क्या पूछता किस्मत अपनी
वो लङकी खुद ही कह गई तेरी नहीं हू मैं

हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके; तुम ने हमें भुला दिया हम न तुम्हें भुला सके।

बिखरी किताबें भीगे अवर्क और ये तन्हाई; कहूँ कैसे कि मिला मोहब्बत में कुछ भी नहीं।

कर दिया कुर्बान खुद को हमने वफ़ा के नाम पर; छोड़ गए वो हमको अकेला मज़बूरियों के नाम पर।