क्या बटवारा था हाथ की लकीरों का भी
उसके हिस्से में प्यार मेरे हिस्से में इंतज़ार

फिर क्यों इतने मायूस हो उसकी बेवफाई पर फराज ; तुम खुद ही तो कहते थे कि वो सबसे जुदा है।

चेहरे अजनबी हो जाये तो कोई बात नही लेकिन
रवैये अजनबी हो जाये तो बडी तकलीफ देते हैं

तेरी मोहब्त पर मेरा कोई हक तो नहीँ मगर
जी चाहता हैँ आखिरी सांस तक तेरा इन्तजार करुँ

ना मेरा दिल बुरा था ना उस में कोई बुराई थी
सब मुकदर का खेल है बस किस्मत में ही जुदाई थी

तुम बिन मेरी जात अधूरी जैसे कोई बात अधूरी; हिजर के सारे दिन पूरे लेकिन है हर रात अधूरी।

हौंसला तो तुझमे भी ना था मुझसे जुदा होने का; वर्ना काजल तेरी आँखों का यूँ फैला नहीं होता!

कितना आसां था तेरे हिज्र में मरना जाना; फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते-जाते। हिज्र: जुदाई

खुद के लिए इक सज़ा मुकर्रर कर ली मैंने
तेरी खुशियो की खातिर तुझसे दूरियां चुन ली मैंने

यूँ तो काफी मिर्च-मसाले हैं इस जिंदगी में;​​​​तुम्हारे बिना जायका फिर भी फीका ही लगता है....

दौर-ए-तन्हाई में झोंका हवा का जब भी कोई आया; दिल देता है दस्तक कि देख कहीं वो लौट तो नहीं आया।

तेरे पास जो है उसमें सबर कर और उसकी कद्र कर दीवाने
यहाँ तो आसमां के पास भी खुद की जमीं नहीं

सोचता हूँ कि अब तेरे दिल में उतर कर देखूं
कौन है वहां जो मुझको तेरे दिल में बसने नहीं देता!

शायद वो अपना वजूद छोड़ गया है मेरी हस्ती में;यूँ सोते-सोते जाग जाना मेरी आदत पहले कभी ना थी।​

अपनी नींद से मुझे कुछ यूँ भी मोहब्बत है फ़राज़ कि उसने कहा था मुझे पाना एक ख्वाब है तेरे लिए