तेरे सीने से लगकर तेरी आरज़ू बन जाऊं; तेरी साँसों से मिलकर तेरी खुशबू बन जाऊं; फांसले न रहे कोई हम दोनों के दरमियान; मैं मैं न रहूँ बस तू ही तू बन जाऊं।

आंसू न होते तो आँखें इतनी खूबसूरत न होती; दर्द न होता तो ख़ुशी की कोई कीमत न होती; अगर मिल जाता कोई चाहने से; तो दुनिया में ऊपर वाले की भी जरुरत न होती।

ज़माने भर की निगाहों में जो खुदा सा लगे; वो अजनबी है मगर मुझ को आशना सा लगे; न जाने कब मेरी दुनिया में मुस्कुराएगा; वो शख्स जो ख्वाबों में भी खफा सा लगे।

माँगते थे रोज़ दुआ में सुकून ख़ुदा से; सोचते थे वो चैन हम लाएं कहाँ से; किसी रोज एक प्यासे को पानी क्या पिला दिया; लगा जैसे खुदा ने सुकून का पता बता दिया।

तुम्हारी पसंद हमारी चाहत बन जाये; तुम्हारी मुस्कुराहट दिल की राहत बन जाये; खुदा खुशियों से इतना खुश कर दे आपको; कि आपको खुश देखना हमारी आदत बन जाये।

इस कदर इस जहाँ में जिंदा हूँ मैं; हो गयी थी भूल अब शर्मिंदा हूँ मैं; मेरी कोशिश है ​कि ना हो तेरी दुनिया में कोई गम; तू आवाज़ दे गगन से एक परिंदा हूँ मैं​।

तेरी दुआ से कज़ा तो बदल नहीं सकती; मगर है इस से यह मुमकिन कि तू बदल जाये; तेरी दुआ है कि हो तेरी आरज़ू पूरी; मेरी दुआ है तेरी आरज़ू बदल जाये। अनुवाद: कज़ा = भाग्य

बिकता अगर प्‍यार तो कौन नहीं खरीदता; बिकती अगर खुशियां तो कौन उसे बेचता; दर्द अगर बिकता तो हम आपसे खरीद लेते; और आपकी खुशियों के लिए हम खुद को बेच देते।

थक गया हूँ रोटी के पीछे भाग भाग कर; थक गया हूँ सोती रातों में जाग जाग कर; काश मिल जाये वही बीता हुआ बचपन; जब माँ खिलाती थी भाग भाग कर और सुलाती थी जाग जाग कर।

सभी के चेहरे में वो बात नहीं होती; थोड़े से अँधेरे से रात नहीं होती; जिंदगी में कुछ लोग बहुत प्यारे होते हैं; क्या करें उन्ही से हमारी मुलाकात नहीं होती!

ए काश वो किसी दिन तनहाइयों में आयें; उनको ये राजे दिल हम महफ़िल में क्या बतायें; लगता है डर उन्हें तो हमराज़ लेके आयें; जो पूछना है पूछे कहना है जो सुनाएँ।

तेरी दुआ से कज़ा तो बदल नहीं सकती; मगर है इस से यह मुमकिन कि तू बदल जाये; तेरी दुआ है कि हो तेरी आरज़ू पूरी; मेरी दुआ है तेरी आरज़ू बदल जाये। शब्दार्थ: कज़ा - भाग्य

ना जाने कब वो हसीन रात होगी; जब उनकी निगाहें हमारी निगाहों के साथ होंगी; बैठे हैं हम उस रात के इंतज़ार में; जब उनके होंठों की सुर्खियां हमारे होंठों के साथ होंगी।

वो नजर कहां से लाऊँ जो तुम्हें भुला दे; वो दुआ कहां से लाऊँ जो इस दर्द को मिटा दे; मिलना तो लिखा होता है तकदीरों में; पर वो तकदीर ही कहां से लाऊँ जो हम दोनों को मिला दे!

रात की तन्हाई में उनको आवाज़ दिया करते हैं ! रात में सितारों से उनका ज़िक्र किया करते हैं ! वो आयें या न आयें हमारे ख्वाबों में ! हम तो बस उन्ही का इंतज़ार किया करते हैं !