बच्चे जब बड़े हो जाते है
बाप के सर पर खड़े हो जाते है

बाल सफेद करने में जिंदगी निकल जाती हैं !
काले तो आधे घंटे में हो जाते हैं !!

भीड़ में खड़ा होना मकसद नही है मेरा
बल्कि भीड़ जिसके लिए खड़ी है वो बनना है मुझे

मोहब्बत ना सही मुकदमा ही कर दे मुझ पर
कम से कम तारीख दर तारीख मुलाक़ात तो होगी

कोई कितनी भी हमदर्दी जता दे कंधे पर हाथ रख दे साथ में आंसू बहा ले कोई काम नहीं आता
खुद का दर्द खुद को ही सहना पड़ता.

निगाहों से भी चोट लगती है जनाब जब कोई देख कर भी अनदेखा कर देता है।

मेरी लिखी बात को हर कोई समझ् नहीं पाता
क्योकि मै अहसास लिखता हूँ और लोग अल्फ़ाज़ पढ़ते है

कुर्बान हो गया मैं उस सख्श की हाथों की लकीरों पर
जिसने तुझे माँगा भी नहीं और तुझे पा भी लिया

हो चुके अब तुम किसी के; कभी मेरी ज़िंदगी थे तुम; भूलता है कौन मोहब्बत पहली; मेरी तो सारी ख़ुशी थे तुम।

तुझे अपना बनाने की हसरत थी जो बस दिल में ही रह गयी; चाहा था तुझे टूट कर हमने; चाहत थी बस चाहत बन कर रह गयी।

मेरे प्यार को वो समझ नहीं पाया; रोते थे जब बैठ तनहा तो कोई पास नहीं आया; मिटा दिया खुद को किसी के प्यार में; तो भी लोग कहते हैं कि मुझे प्यार करना नहीं आया।

बहुत दूर जाना पडता है झिंदगी में
यह जानने के लिए कि नज़दीक कौन है

हाल क्या है आपका हमें तो पता नहीं
बेखबर हुँ मैं फिर भी आपकी खता नहीं

हवा खिलाफ थी लेकिन, चिराग भी क्या खूब जला
खुदा भी अपने होने के क्या क्या सबूत देता है

बिखरा वजूद टूटे ख्वाब सुलगती तन्हाइयाँ
कितने हसीन तोहफे दे जाती है ये अधूरी मोहब्बत