दर्द दे कर इश्क़ ने हमे रुला दिया
जिस पर मरते थे उसने ही हमे भुला दिया
हम तो उनकी यादों में ही जी लेते थे
मगर उन्होने तो यादों में ही ज़हेर मिला दिया

मेरी महोब्बत की बस इतनी कहानी है
एक टूटीहुई कश्ती और सूखा हुआ पानी है
एक गुलाब उनकी किताब में दम तोड़ चुका
और उनको याद ही नहीं कि यह किसकी निशानी है

ना पूछ मेरे सब्र की इंतेहा कहाँ तक है; तु सितम कर ले तेरी हसरत जहाँ तक है; वफ़ा की उम्मीद जिन्हें होगी उन्हें होगी; हमें तो देखना है कि तु बेवफ़ा कहाँ तक है।

ऐ दिल मत कर इतनी मोहब्बत किसी से; इश्क़ में मिला दर्द तू सह नहीं पायेगा; एक दिन टूट कर बिखर जायेगा अपनों के हाथों से; किसने तोडा ये भी किसी से कह नहीं पायेगा।

कहाँ कोई ऐसा मिला जिस पर हम दुनिया लुटा देते; हर एक ने धोखा दिया किस-किस को भुला देते; अपने दिल का ज़ख्म दिल में ही दबाये रखा; बयां करते तो महफ़िल को रुला देते।

" बुलबुल के परो में बाज़ नहीं होते,
कमजोर और बुजदिलो के हाथो में राज नहीं होते ,
जिन्हें पड़ जाती है झुक कर चलने की आदत ,
उन सिरों पर कभी ताज नहीं होते। "

यकीन था कि तुम भूल जाओगे मुझे.,
खुशी है कि तुम उम्मीद पर खरे उतरे.!
पूछा जो हमने किसी और के होने लगे हो क्या ?
वो मुस्कुरा के बोले … पहले तुम्हारे थे क्या .?

लोग हमेंशा मुजसे पुछते है भाई तु कभी भी स्माईल नहि करता क्यों
मै भी ans मे कह देता हू जीस दिन ईस भाई ने स्माईल कर दि ना
उस दिन तेरी वाली भी तुजे भाई हि कहेगी

जाये है जी नजात के ग़म में; ऐसी जन्नत गयी जहन्नुम में; आप में हम नहीं तो क्या है अज़ब; दूर उससे रहा है क्या हम में; बेखुदी पर न मीर की जाओ; तुमने देखा है और आलम में।

ऐसा नहीं के तेरे बाद अहल-ए-करम नहीं मिले; तुझ सा नहीं मिला कोई लोग तो कम नहीं मिले; एक तेरी जुदाई के दर्द की बात और है; जिन को न सह सके ये दिल ऐसे तो गम नहीं मिले।

वो नाराज़ हैं हमसे कि हम कुछ लिखते नहीं; कहाँ से लायें लफ्ज़ जब हम को मिलते ही नहीं; दर्द की जुबान होती तो बता देते शायद; वो ज़ख्म कैसे दिखायें जो दिखते ही नहीं।

मैं अपनी वफाओं का भरम ले के चली हूँ; हाथों में मोहब्बत का आलम लेकर चली हूँ; चलने ही नहीं देती यह वादे की ज़ंज़ीर; मुश्किल था मगर इश्क़ के सारे सितम लेकर चली हूँ।

परिन्दों को नहीं दी जाती तालीम उड़ानों की
वो खुद ही तय करते हैं मंजिल आसमानों की
रखते हैं जो होसला आसमां को छूने का
उनको नहीं होती परवाह गिर जाने की

बर्बाद कर गए वो ज़िंदगी प्यार के नाम से; बेवफाई ही मिली हमें सिर्फ वफ़ा के नाम से; ज़ख़्म ही ज़ख़्म दिए उस ने दवा के नाम से; आसमान भी रो पड़ा मेरी मोहब्बत के अंजाम से।

तेरी याद में आंसुओं का समंदर बना लिया; तन्हाई के शहर में अपना घर बना लिया; सुना है लोग पूजते हैं पत्थर को; इसलिए तुझसे जुदा होने के बाद दिल को पत्थर बना लिया।