Maggi Ban होने से उन भोली भाली Angel प्रिया का क्या होगा
जो उल्टी सीधी मैगी बना कर फेसबुक पर यम्मी मैगी कौन कौन खायेगा
टाइप की पोस्ट डाल लाखों आशिकों के लाइक और कमेंट ले लेती थी

कोई रूठा हुआ शख्स आज बहुत
याद आया.....
><
एक- गुजरा हुआ वक्त आज बहुत
याद आया.....
><
छुपा लेता था जो मेरे दर्द को सीने
मे अपने.....
><
आज- फिर दर्द हुआ तो वह बहुत
याद आया.....

किसी ने मुझसे पुछा की :
"तुम इतने खुश कैसे
रेह लेते हो…??"
तो मेने कहा :-
"मैनें ज़िन्दगी की गाड़ी
से वो साइड ग्लास
ही हटा दिया,
जिसमे पीछे छूटे रास्ते नज़र आते हैं..!

महफ़िल भी रोयेगी महफ़िल में हर शख्स भी रोयेगा; डूबी जो मेरी कश्ती तो चुपके से साहिल भी रोयेगा; इतना प्यार बिखेर देंगे हम इस दुनिया में कि; मेरी मौत पे मेरा क़ातिल भी रोयेगा।

शोला था जल बुझा हूँ हवाएं मुझे न दो; मैं तो कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे न दो; वो ज़हर भी पी चुका हूँ जो तुमने मुझे दिया था; आ गया हम मौत के आग़ोश में अब मुझे ज़िंदगी की दुआएं न दो।

किस फ़िक्र किस ख्याल में खोया हुआ सा है; दिल आज तेरी याद को भूला हुआ सा है; गुलशन में इस तरह कब आई थी फसल-ए-गुल; हर फूल अपनी शाख से टूटा हुआ सा है। शब्दार्थ: फसल-ए-गुल = बहार का मौसम

हमनें जब किया दर्द-ए-दिल बयां तो शेर बन गया; लोगों ने सुना तो वाह वाह किया दर्द और बढ़ गया; मोहब्बत की पाक रूह मेरे साँसों में है; ख़त लिखा जब गम कम करने के लिए तो गम और बढ़ गया।

कोई अनीस कोई आश्ना नहीं रखते; किसी आस बग़ैर अज खुदा नहीं रखते; किसी को क्या हो दिलों की शिकस्तगी की खबर; कि टूटने में यह दिल सदा नहीं रखते। शब्दार्थ: शिकस्तगी = उदासी सदा = आवाज़

हर रोज़ पीता हूँ तेरे छोड़ जाने के ग़म में
वर्ना पीने का मुझे भी कोई शौंक नहीं
बहुत याद आते है तेरे साथ बीताये हुये लम्हें
वर्ना मर मर के जीने का मुझे भी कोई शौंक नहीं

खुलेगी इस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ता; किया जाता है पानी में सफ़र आहिस्ता आहिस्ता; कोई ज़ंजीर फिर वापस वहीं पर ले के आती है; कठिन हो राह तो छूटता है घर आहिस्ता आहिस्ता।

तड़पते हैं न रोते हैं न हम फ़रियाद करते हैं; सनम की याद में हर-दम ख़ुदा को याद करते हैं; उन्हीं के इश्क़ में हम नाला-ओ-फ़रियाद करते हैं; इलाही देखिये किस दिन हमें वो याद करते हैं।

मैंने ज़माने के एक बीते दोर को देखा है
दिल के सुकून को और गलियों के शोर को देखा है
मैं जानता हूँ की कैसे बदल जाते हैं इन्सान
अक्सर मैंने कई बार अपने अंदर किसी ओर को देखा है

समझौतों की भीड़-भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया; इतने घुटने टेके हमने आख़िर घुटना टूट गया; ये मंज़र भी देखे हमने इस दुनिया के मेले में; टूटा-फूटा ​ बचा​ रहा है अच्छा ख़ासा टूट गया।

अपनी हर बात रखने का दावा किया उसने; लगा जैसे हकीकत में जीने का बहाना किया उसने; टूट गया कोई अल्फ़ाज़ों से उनके उनको पता तक नहीं; ज़िंदगी सिर्फ नाम नहीं मोहब्बत का यह भी सिखाया उसने।

दर्द की महफ़िल में एक शेयर हम भी अर्ज़ किया करते हैं; न किसी से मरहम न दुआओं कि उम्मीद किया करते हैं; कई चेहरे लेकर लोग यहाँ जिया करते हैं; हम इन आँसुओं को एक चेहरे के लिए पिया करते हैं|