ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने... ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए; वो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गए; वीरान है सहन ओ बाग़ बहारों को क्या हुआ; वो बुलबुलें कहाँ वो तराने किधर गए; है नज्द में सुकूत हवाओं को क्या हुआ; लैलाएँ हैं ख़मोश दीवाने किधर गए; उजड़े पड़े हैं दश्त ग़ज़ालों पे क्या बनी; सूने हैं कोह-सार दीवाने किधर गए; वो हिज्र में विसल की उम्मीद क्या हुई; वो रंज में ख़ुशी के बहाने किधर गए; दिन रात मयकदे में गुज़रती थी ज़िन्दगी; अख़्तर वो बे-ख़ुदी के ज़माने किधर गए।

सर-ए-सहरा मुसाफ़िर को... सर-ए-सहरा मुसाफ़िर को सितारा याद रहता है; मैं चलता हूँ मुझे चेहरा तुम्हारा याद रहता है; तुम्हारा ज़र्फ़ है तुम को मोहब्बत भूल जाती है; हमें तो जिस ने हँस कर भी पुकारा याद रहता है; मोहब्बत में जो डूबा हो उसे साहिल से क्या लेना; किसे इस बहर में जा कर किनारा याद रहता है; बहुत लहरों को पकड़ा डूबने वाले के हाथों ने; यही बस एक दरिया का नज़ारा याद रहता है; मैं किस तेज़ी से ज़िंदा हूँ मैं ये तो भूल जाता हूँ; नहीं आना है दुनिया में दोबारा याद रहता है।

कहाँ ले जाऊँ दिल... कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है; यहाँ परियों का मजमा है वहाँ हूरों की महफ़िल है; इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं; के हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है; ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा; मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है मेरा दिल; है जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुंजलाकर; अरे तू कौन है हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है; हज़ारों दिल मसल कर पांओ से झुंजला के फ़रमाया; लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है।

ख़ुद को औरों की तवज्जो का... ख़ुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करो; आइना देख लो अहबाब से पूछा न करो; वह जिलाएंगे तुम्हें शर्त बस इतनी है कि तुम; सिर्फ जीते रहो जीने की तमन्ना न करो; जाने कब कोई हवा आ के गिरा दे इन को; पंछियो ! टूटती शाख़ों पे बसेरा न करो; आगही बंद नहीं चंद कुतुब-ख़ानों में; राह चलते हुए लोगों से भी याराना करो; चारागर छोड़ भी दो अपने मरज़ पर हम को; तुम को अच्छा जो न करना है तो अच्छा न करो; शेर अच्छे भी कहो सच भी कहो कम भी कहो; दर्द की दौलते-नायाब को रुसवा न करो।

मुझ से काफ़िर को तेरे इश्क़ ने... मुझ से काफ़िर को तेरे इश्क़ ने यूँ शरमाया; दिल तुझे देख के धड़का तो खुदा याद आया; मेरे दिल पे तो है अब तक तेरे ग़म का साया; लोग कहते हैं नया दौर नए दुख लाया; मेरा मियार-ए-वफ़ा ही मेरी मज़बूरी है; रुख बदल कर भी तुझे अपने मुक़ाबिल पाया; चारागर आज सितारों की क़सम खा के बता; किस ने इंसान को तबस्सुम के लिए तड़पाया; लोग हँसते तो इस सोच में खो जाता हूँ; मौज-ए-सैलाब ने फिर किसका घरौंदा ढाया; उसके अंदर कोई फनकार छुपा बैठा है; जानते-बुझते जिस शख्स ने धोखा खाया।

वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का... वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जा; इसी तरह से ज़माने को आज़माए जा; किसी में अपनी सिफ़त के सिवा कमाल नहीं; जिधर इशारा-ए-फ़ितरत हो सिर झुकाए जा; वो लौ रबाब से निकली धुआँ उठा दिल से; वफ़ा का राग इसी धुन में गुनगुनाए जा; नज़र के साथ मोहब्बत बदल नहीं सकती; नज़र बदल के मोहब्बत को आज़माए जा; ख़ुदी-ए-इश्क़ ने जिस दिन से खोल दीं आँखें; है आँसुओं का तक़ाज़ा कि मुस्कुराए जा; वफ़ा का ख़्वाब है एहसान ख़्वाब-ए-बे-ताबीर; वफ़ाएँ कर के मुक़द्दर को आज़माए जा।

हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए; ग़ुरूर छोड़ दो ऐ ग़ाफ़िलो ख़ुदा के लिए; गिरा दिया है हमें किस ने चाह-ए-उल्फ़त में; हम आप डूबे किसी अपने आशना के लिए; जहाँ में चाहिए ऐवान ओ क़स्र शाहों को; ये एक गुम्बद-ए-गर्दूं है बस गदा के लिए; वो आईना है के जिस को है हाजत-ए-सीमाब; इक इज़्तिराब है काफ़ी दिल-ए-सफ़ा के लिए; तपिश से दिल का हो क्या जाने सीने में क्या हाल; जो तेरे तीर का रोज़न न हो हवा के लिए; जो हाथ आए ज़फ़र ख़ाक-पा-ए-फ़ख़रूद्दीन; तो मैं रखूँ उसे आँखों के तूतया के लिए।

आपका मक़सद पुराना है आपका मक़सद पुराना है मगर खंज़र नया; मेरी मजबूरी है मैं लाऊँ कहाँ से सर नया; मैं नया मयक़श हूँ मुझको चाहिये हर शै नयी; एक मयख़ाना नया साक़ी नया साग़र नया; देखता हूँ तो सभी घर मुझको लगते हैं नये; सोचता हूँ तो नहीं लगता है कोई घर नया; देखिये घबरा न जाये तालियों के शोर में; आज पहली बार आया है ये जादूगर नया; हम किसी सूरत किसी के हाथ बिक सकते नहीं; चाहे वो ताज़िर पुराना हो या सौदागर नया; मेरा शीशे का मकाँ तामीर होने दीजिये; हर किसी के हाथ में आ जायेगा पत्थर नया।

जाने किस बात... जाने किस बात पे उस ने मुझे छोड़ दिया है फ़राज़; मैं तो मुफलिस था किसी मन की दुआओं की तरह; उस ​शख्स को तो बिछड़ने का सलीका नहीं फ़राज़; जाते हुए खुद को मेरे पास छोड़ गया; अब उसे रोज सोचो तो बदन टूटता है फ़राज़; उम्र गुजरी है उसकी याद नशा करते ​-​करते; बे-जान तो मै अब भी नहीं फराज; मगर जिसे जान कहते थे वो छोड़ गया; जब्त ऐ गम कोई आसान काम नहीं फराज; आग होते है वो आंसू जो पिए जाते हैं; क्यों उलझता रहता है तू लोगो से फराज; ये जरूरी तो नहीं वो चेहरा सभी को प्यारा लगे।

ये चाँदनी भी जिन को... ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है; दुनिया उन्हीं फूलों को पैरों से मसलती है; शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा है; जिस डाल पर बैठे हो वो टूट भी सकती है; लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे; यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है; आ जाता है ख़ुद खींच कर दिल सीने से पटरी पर; जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है; आँसू कभी पलकों पर तो देर तक नहीं रुकते; उड़ जाते हैं वे पंछी जब शाख़ लचकती है; ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये; बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है।

जब भी कश्ती मेरी... जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है; माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है; रोज़ मैं अपने लहू से उसे ख़त लिखता हूँ; रोज़ उँगली मेरी तेज़ाब में आ जाती है; दिल की गलियों से तेरी याद निकलती ही नहीं; सोहनी फिर इसी पंजाब में आ जाती है; रात भर जागते रहने का सिला है शायद; तेरी तस्वीर-सी महताब में आ जाती है; ज़िन्दगी तू भी भिखारिन की रिदा ओढ़े हुए; कूचा-ए-रेशम-ओ-कमख़्वाब में आ जाती है; दुख किसी का हो छलक उठती हैं मेरी आँखें; सारी मिट्टी मेरे तालाब में आ जाती है।

कौन कहता है कि... कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊँगा; मैं तो दरिया हूं समंदर में उतर जाऊँगा; तेरा दर छोड़ के मैं और किधर जाऊँगा; घर में घिर जाऊँगा सहरा में बिखर जाऊँगा; तेरे पहलू से जो उठूँगा तो मुश्किल ये है; सिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा जिधर जाऊँगा; अब तेरे शहर में आऊँगा मुसाफ़िर की तरह; साया-ए-अब्र की मानिंद गुज़र जाऊँगा; तेरा पैमान-ए-वफ़ा राह की दीवार बना; वरना सोचा था कि जब चाहूँगा मर जाऊँगा; ज़िन्दगी शमा की मानिंद जलाता हूं नदीम ; बुझ तो जाऊँगा मगर सुबह तो कर जाऊँगा।

वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म... वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जा; इसी तरह से ज़माने को आज़माए जा; किसी में अपनी सिफ़त के सिवा कमाल नहीं; जिधर इशारा-ए-फ़ितरत हो सर झुकाए जा; वो लौ रबाब से निकली धुआँ उठा दिल से; वफ़ा का राग इसी धुन में गुनगुनाए जा; नज़र के साथ मोहब्बत बदल नहीं सकती; नज़र बदल के मोहब्बत को आज़माए जा; ख़ुदी-ए-इश्क़ ने जिस दिन से खोल दीं आँखें; है आँसुओं का तक़ाज़ा कि मुस्कुराए जा; वफ़ा का ख़्वाब है एहसान ख़्वाब-ए-बे-ताबीर; वफ़ाएँ कर के मुक़द्दर को आज़माए जा।

​पत्थर के जिगर वालों.... पत्थर के जिगर वालों गम में वो रवानी है; खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है; फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है; उस में तेरी जुल्फों की बेतरतीब कहानी है; इक जहने परेशां में वो फूल सा चेहरा है; पत्थर की हिफाज़त में शीशे की जवानी है; क्यों चाँदनी रातों में दरिया पे नहाते हो; सोये हुए पानी में क्या आग लगानी है; इस हौसले दिल पर हम ने भी कफ़न पहना; हँस कर कोई पूछेगा क्या जान गंवानी है; रोने का असर दिल पर रह रह के बदलता है; आँसूं कभी शीशा है आँसूं कभी पानी है...

मियाँ मैं शेर हूँ... मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती; मैं लहजा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती; मैं इक दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था; मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़ुवाहट नहीं जाती; जहाँ मैं हूँ वहीं आवाज़ देना जुर्म ठहरा है; जहाँ वो है वहाँ तक पाँव की आहट नहीं जाती; मोहब्बत का ये ज़ज्बा जब ख़ुदा की देन है भाई; तो मेरे रास्ते से क्यों ये दुनिया हट नहीं जाती; वो मुझसे बेतकल्लुफ़ हो के मिलता है मगर; न जाने क्यों मेरे चेहरे से घबराहट नहीं जाती।