खुद को वो चाहे लाख मुकमल समझें; लेकिन मेरे बिना वो मुझे अधुरा ही लगता है!
खुद को वो चाहे लाख मुकमल समझें; लेकिन मेरे बिना वो मुझे अधुरा ही लगता है!
तुम मुझे मौका तो दो ऐतबार बनाने का; थक जाओगे मेरी वफाओं के साथ चलते चलते!
रोज कहता हूँ न जाऊँगा कभी घर उसके; रोज उस के कूचे में कोई काम निकल आता है।
उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे; उस एक शख़्स में किस किस को देखता था मैं।
तुम राह में चुप-चाप खड़े हो तो गए हो; किस-किस को बताओगे घर क्यों नहीं जाते।
ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-करार; बेकरारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो ना थी।
तमाम नींदें गिरवी हैं हमारी उसके पास; जिससे ज़रा सी मुहब्बत की थी हमनें!
यूँ तो तमन्ना दिल में ना थी लेकिन; ना जाने तुझे देखकर क्यों आशिक बन बैठे।
कोई ठुकरा दे तू हंस के सह लेना; मोहब्बत की ताबित में ज़बरदस्ती नहीं होती!
ना छोड़ना मेरा साथ ज़िन्दगी में कभी; शायद मैं ज़िंदा हूँ तेरे साथ की वजह से।
अच्छी सूरत नज़र आते ही मचल जाता है; किसी आफ़त में न डाले दिल-ए-नाशाद मुझे।
लाजिमी नहीं की आपको आँखों से ही देखुं
आपको सोचना आपके दीदार से कम नहीं
दिल्लगी कर जिंदगी से दिल लगा के चल
जिंदगी है थोड़ी थोडा मुस्कुरा के चल
तुझको पाकर भी न कम हो सकी बेताबि-ए-दिल; इतना आसान तिरे इश्क़ गम था भी कहां।
तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको; मेरी बात और है मैने तो मोहब्बत की है!