मोहब्बत के लबोँ पर फिर वही तकरार बैठी है; एक प्‍यारी सी मीठी सी कोई झनकार बैठी है; तुझसे दूर रहकर के हमारा हाल है ऐसा; मैँ तेरे बिन यहाँ तू मेरे बिन वहाँ बेकार बैठी है।

आज असमान के तारों ने मुझे पूछ लिया; क्या तुम्हें अब भी इंतज़ार है उसके लौट आने का! मैंने मुस्कुराकर कहा; तुम लौट आने की बात करते हो; मुझे तो अब भी यकीन नहीं उसके जाने का!

तुम्हारे नाम को होंठों पर सजाया है मैंने! तुम्हारी रूह को अपने दिल में बसाया है मैंने! दुनिया आपको ढूंढते ढूंढते हो जायेगी पागल! दिल के ऐसे कोने में छुपाया है मैंने!

मेरी साँसों में बिखर जाओ तो अच्छा होगा; बन के रूह मेरे जिस्म में उतर जाओ तो अच्छा होगा; किसी रात तेरी गोद में सिर रख के सो जाऊं; फिर उस रात की कभी सुबह ना हो तो अच्छा होगा।

किसी पत्थर में मूर्त है कोई पत्थर की मूर्त है; लो हम ने देख ली दुनिया जो इतनी खूबसूरत है; ज़माना अपनी न समझे कभी पर मुझे खबर है; कि तुझे मेरी ज़रूरत है और मुझे तेरी ज़रूरत है।

फूलों की याद आती है काँटों को छूने पर; रिश्तों की समझ आती है फासलों पे रहने पर; कुछ जज़्बात ऐसे भी होते हैं जो आँखों से बयां नहीं होते; वो तो महसूस होते हैं ज़ुबान से कहने पर।

किसी ने मुझसे पुछा की :
"तुम इतने खुश कैसे
रेह लेते हो…??"
तो मेने कहा :-
"मैनें ज़िन्दगी की गाड़ी
से वो साइड ग्लास
ही हटा दिया,
जिसमे पीछे छूटे रास्ते नज़र आते हैं..!

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या; क्या बताऊँ कि मिरे दिल में हैं अरमाँ क्या क्या; ग़म अज़ीज़ों का हसीनों की जुदाई देखी; देखें दिखलाए अभी गर्दिश-ए-दौराँ क्या क्या।

जो आपने न लिया हो ऐसा कोई इम्तिहान न रहा; इंसान आखिर मोहब्बत में इंसान न रहा; है कोई बस्ती जहां से न उठा हो ज़नाज़ा दीवाने का; आशिक की कुर्बत से महरूम कोई कब्रिस्तान न रहा।

आँखों में देख कर वो दिल की हकीकत जानने लगे; उनसे कोई रिश्ता भी नहीं फिर भी अपना मानने लगे; बन कर हमदर्द कुछ ऐसे उन्होंने हाथ थामा मेरा; कि हम खुदा से दर्द की दुआ मांगने लगे।

इत्तेफ़ाक़ से ही सही मगर मुलाकात हो गयी; ढूंढ रहे थे हम जिन्हें आखिर उन से बात हो गयी; देखते ही उन को जाने कहाँ खो गए हम; बस यूँ समझो दोस्तो वहीं से हमारे प्यार की शुरुआत हो गयी।

इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है; सब्र रुख़्सत हो रहा है इज़्तिराब आने को है। अनुवाद: इब्तिदा-ए-इश्क़ = इश्क़ की शुरुआत लुत्फ़-ए-शबाब = जवानी का मज़ा इज़्तिराब = बेचैनी

इस दिल की हर धड़कन का एहसास हो तुम; तुम क्या जानो हमारे लिए कितने ख़ास हो तुम; जुदा होकर तुमने हमे मौत से भी बदतर सज़ा दी है; फिर भी इस तड़पते हुए दिल ने तुम्हें खुश रहने की दुआ दी है।

अब आएं या न आएं इधर पूछते चलो; क्या चाहती है उनकी नज़र पूछते चलो; हम से अगर है तर्क-ए-ताल्लुक तो क्या हुआ; यारो कोई तो उनकी ख़बर पूछते चलो। शब्दार्थ: तर्क-ए-ताल्लुक = टूटा हुआ रिश्ता

जब पास हों तो रुख से निगाहें ना मोड़ना; जब दूर हों तो मेरा तस्सावुर न छोड़ना; सोच लेना दिल लगाने से पहले एक बार; मुश्किल बहुत है निभाने रिश्ते भूल कर भी कभी इनकी ज़ंजीरें ना तोडना।