चुरा के मुट्ठी में दिल को छिपाए बैठे है; बहाना यह है कि मेहंदी लगाए बैठे है।

तुम को हज़ार शर्म सही मुझ को लाख ज़ब्त; उल्फ़त वो राज़ है कि छुपाया न जाएगा।

रात से शिकायत क्या बस तुम्हीं से कहना है; बस तुम ज़रा ठहर जाओ रात कब ठहरती है।

हम फिर उनके रूठ जाने पर फ़िदा होने लगे; फिर हमे प्यार आ गया जब वो ख़फ़ा होने लगे।

हम जानते तो इश्क़ न करते किसी के साथ; ले जाते दिल को ख़ाक में इस आरज़ू के साथ।

तमाम उम्र इसी बात का गुरुर रहा मुझे
किसी ने मुझसे कहा था की हम तुम्हारे है

उसे किस्मत समझ कर सीने से लगाया था
भूल गए थे के किस्मत बदलते देर नहीं लगती

तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा; शमा होगी जहाँ परवाना वहाँ पहुँचेगा।

तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा; शमा होगी जहाँ परवाना वहाँ पहुँचेगा।

!!!...कल तुझसे बिछड़नेका फैसला कर लिया था...!!!!!!...आज
अपने ही दिल को रिश्वत दे रहा हूँ...!!!

मैं ज़िंदगी की दुआ माँगने लगा हूँ बहुत,
जो हो सके तो दुआओं को बेअसर कर दे।।

ना कोई हमदर्द था ना ही कोई दर्द था
फिर एक हमदर्द मिला उसी से सारा दर्द मिला

सुकून मिलता है दो लफ्ज़ कागज पर उतार कर
चीख भी लेती हूँ और आवाज भी नहीं होती

रिश्ते अगर बढ़ जाये हद से तो ग़म मिलते है
इसलिए आजकल हम हर शख्स से कम मिलते है

उनकी नजरो में फर्क अब भी नहीं पहले मुड़ के देखते थे
और अब देख के मुड़ जाते हैं