मंजिले कितनी भी ऊँची हो,
पर रास्ते हमेशा पैरो के नीचे होते है....
मंजिले कितनी भी ऊँची हो,
पर रास्ते हमेशा पैरो के नीचे होते है....
ना तुमने आवाज़ दी ना मैंने मुड़ के देखा
ख़ामोशी चलती रही दरम्यां
मरते तो तुझ पर लाखो होगें
मगर मै तो तेरे साथ जिना चाहता हुं सनम
जहासे तेरी बादशाही खत्म होती है वहासे मेरी नवाबी सुरु होती हे ।
यूँ ही रूठे रहना तुम हम से
कसम से तुम रूठे हुये भी अच्छे लगते हो...
सूनो मेरे किस्से में तुम आते हो
मेरे हिस्से में क्यूँ नहीं आते
हर रोज हर वक़्त तेरा ही ख्याल
ना जाने किस कर्ज की क़िस्त हो तुम।
तमाम उम्र चले उनके साथ हमसफर बनकर
फिर भी हर मोड़ पर एक फासला रहा
वो पूछते हैं क्या नाम है मेरा…
मैंने कहा बस अपना कहकर पुकार लो…!
मेरे दिल से खेल तो रहे हो पर
ज़रा संभल के टूटा हुआ है कहीं लग ना जाए
थी जिसकी मौहब्बत में मौत भी मंजुर
आज उसकी नफरत ने जिना सिखा दिया
नाम से नाम नहीं जुड़ा करते बुद्धु
दिल से दिल जुड़ा करते हैं समझे
चुइंगम की तरह चबाया करूं नाम तेरा
न हलक से उतरे न फेंकने का मन होय
तुम ने देखी नही फुलो की वफा
वो जीस पर खीलते हे उसी पे मुरजा जाते हे
जब भी मौका मिलेगा ना, तो ,, जिस्म पे नही सीधे घाव पर वार करुंगा..... ((मा कसम))